कीमोथेरेपी*
kimotherepi*
मेरा शरीर एक देश है
सागर से अंबर तक, पानी से पृथ्वी तक
अनुभव जठराग्नि के खेत में
झुकी हुई गेहूँ की बाली
मेरे हाथ, मेरा दिल, मेरी ज़ुबान
मेरी आँखें, त्वचा और जाँघें सब
अब इतनी हसरत से ताकते हैं मेरी ओर
कि जी भर आता है
इन्हीं में तुम्हारे निशान हैं सर्द-सख़्त
इसी ठौर दिल है
लदा-फँदा
दुःख और इच्छा से
मोह से बिछोह से
सिर्फ़ साधन नहीं है मेरी देह,
न सिर्फ़ ओढ़ने की चादर
मुझे इससे बहुत, बहुत इश्क़ है
इसी घर के साये में
कोई बैठा है
चुपचाप
अपना ही, लगाए घात
छोटा-सा,
बामुलाहिज़ा अदब के साथ,
इंतज़ार करता हुआ वाजिब वक़्त का
यहाँ सज सकती हैं अक्षौहिणी सेनाएँ
निरापद इश्क़ का यह अड्डा
कब समरभूमि में बदल जाएगा
यह सिर्फ़ दुश्मन ही जानता है
दुश्मन ही जानता है
हमारे इस तंत्र की सबसे कमज़ोर कड़ी
और ठीक इसीलिए हमले का वक़्त
यह एक समरभूमि है
यहाँ लाख नियम एक साथ चलते हैं
व्यूह भेद की लाख कलाएँ
लाखों मोर्चे एक ही वक़्त में एक ही जगह पर खुले रहते हैं
एक दूसरे से गुँथे
संगति में
असंगति के समय
दाहिने हाथ की बात नहीं सुनता बायाँ हाथ
पैर और सिर आपस में जूझ जाते हैं
साँसें कलेजे से
आँखें अंदर ही उतरती चली जाती हैं
मांसपेशियाँ शिराओं से अलग हो जाती हैं
रात का शरीर एक विशाल कमल कोष है
जिससे छूट पड़ना चाहता है भौंरा
युद्धभूमि में सामने खड़े हो गए हैं लड़ाके
प्रतिशोध की आग धधक कर निर्धूम हो चुकी
साम दाम दंड सभी भेदों से
जीते जा रहे हैं गढ़ एक के बाद एक
समर्पण हो रहे हैं
अंदर ही होती जाती है भारी उथल-पुथल
ईश्वर की स्मृति से लेकर समाधि तक के सारे
उपाय सब घिस कर
चमकाए जा चुके
आज़माए जा चुके
भरे हुए हाथों में थाम मुट्ठी भर दवाएँ
बाहरी इमदाद के भरोसे
हूँ हूँ हूँ
बजती हुई रणभेरी
देरी नहीं है अब
आते ही होंगे वे सर्जन/सर्जक
सोडियम क्लोराइड के द्रव और
ऑक्सीजन गैस का दबाव बढ़ाते
विशेषज्ञ आए
मलबे के बोझ से सिहर रहा है विचार-तंत्र
लंबी सिरिंजों पर लाभ का निशान चटख
डाली गईं लंबी और पतली नलिकाएँ
दुश्मनों के गढ़ तक पहुँचने की ख़ातिर
घर में आहूत हुए भस्मासुर
नज़र तनिक फिरी नहीं कि गोली चली नहीं
मेरे भीतर मेरी ही लाशें भरी हैं
बावन अंगुल की बावन लाशें
इतने सबके बाद भी
फिर फिर पलट पड़ता है हत्यारा खेल
शरीर के भीतर ही बर्बर नरसंहार
दुश्मन से लड़ने के
आदिम सलीक़े से
पूरा-पूरा नगर जला दिया वानरों ने
पूरा वन प्रांतर, गिरिखोह
सब कुछ उजाड़ दिया
अँकुवाई धरती भी वृक्षों संग जल मरी
लाख बेगुनाहों की क़ीमत पर
पकड़ा गया है संभावित गुनाहगार
तंत्रों से, यंत्रों से, अधुनातम मंत्रों से
आँखें मुँदी मुँदी ही हैं
फेफड़े तक कोई साँस, टूट-टूट आती है
छूट-छूट जाती है हर लम्हा एक बात
त्वचा में भर रही है, गाढ़ी और गहरी रात
बहुत-बहुत धीरे-धीरे बढ़ रहा हूँ मैं
इस निर्मम जंगल से निकाल मुझे घर ले चलो माँ!
कीमोथेरेपी की इस समर-गाथा में
कटे-फटे टुकड़े मनुष्यता के
पूँजी की भव्य-दिव्य निर्मम चट्टानों पर
यही कथा
रोज़-रोज़ दुहराई जाती है
साक्षी हूँ मैं...
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*कीमोथेरेपी कैंसर के इलाज की एक विधि है। इसमें कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को वाह्य दवाओं के ज़रिए मारा जाता है। इलाज की इस प्रक्रिया से शरीर पर काफ़ी बुरे असर पड़ते हैं, क्योंकि इससे प्रभावित कोशिकाओं के साथ सामान्य कोशिकाओं को भी क्षति पहुँचती है।
- रचनाकार : मृत्युंजय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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