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घर और दफ़्तर

ghar aur daftar

अनुवाद : श्यामलाल रैणा

वेदपाल ‘दीप’

वेदपाल ‘दीप’

घर और दफ़्तर

वेदपाल ‘दीप’

और अधिकवेदपाल ‘दीप’

    यहाँ मैं काम करता हूँ

    वहीं रहता भी हूँ

    इक कमरे में,

    यह बात दूसरी है

    आधे कमरे में

    अलमारियाँ और स्टोर हैं

    साथ के कमरे में है दफ़्तर मेरा

    मुझे दफ़्तर आने या घर वापिस

    जाने के लिए

    पार करनी पड़ती है

    सिर्फ़ एक दहलीज़

    बीमार होता हूँ तो दफ़्तर नहीं जाता

    मेरे अफ़सर और कर्मचारी साथी

    वही दहलीज़ लाँघकर

    मेरा हाल पूछने जाते हैं

    घर तो इक एहसास है

    जिस ठिकाने से

    लगाव हो जाए, घर है

    जिस समय मेरी ड्यूटी

    समाप्त होती है

    दूसरी शिफ़्ट आरंभ होती है

    मैं अपने कमरे में

    लंबी चादर तानकर

    गहरी नींद सो जाता हूँ

    दफ़्तर की खचाखच से दूर

    साथ वाला कमरा इतना

    दूर लगता है

    जैसे घर से दफ़्तर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक डोगरी कविता चयनिका (पृष्ठ 67)
    • संपादक : ओम गोस्वामी
    • रचनाकार : वेदपाल 'दीप'
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2006

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