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कविता के विरुद्ध कविता

kawita ke wiruddh kawita

अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र

हरप्रसाद दास

हरप्रसाद दास

कविता के विरुद्ध कविता

हरप्रसाद दास

हम कविता का विरोध सिर्फ़

कर सकते हैं कविता में,

दरअसल कविता को लेकर हुई

हमारी आपसी तकरार में

होता है एक समझौता

हम कवियों के बीच,

तभी कविता नहीं लिखते भले मानुष

फुटकर दुकानदार, पुलिया ठेकेदार

तभी कविता के शब्द समूह

गिने नहीं जाते धन-दौलत में।

एकाध पंक्ति कभी-कभार

रह जाती है किसी-किसी के जमा खाते में

कहावत बन,

उसके लिए भी मिलता है दंड :

रंगनाथ टिक नहीं पाता पुलिस में

कैलाश चला जाता है नटवर

देर रात मुट्ठी भर किनकी और

गुच्छा भर साग लिए

घर पहुँचता है दीनबंधु

सो चुके होते हैं बच्चे तब तक

ख़ाली पेट।

कहते-कहते भी ख़त्म नहीं होती

कविता की किंवदंतियाँ

पर शायद ही हो उनमें

वाक्यों के बनने में करछुल का प्रसंग,

शायद ही हो उनमें

नारियल-बाड़ी में

भूतों की धमा-चौकड़ी की अफ़वाह,

या फिर शायद ही हो उनमें

अचानक बंद डिब्बे में

ज़िंदा जलने का वर्णन।

होते हैं उनमें

असंख्य

हंस

मेघ

दमयन्ती,

क्रमशः

स्वप्न

विषाद और संस्कार के

प्रतीक बन चिरकाल।

स्वप्न विषाद और संस्कार से बनी

हमारी कविताओं की हास्यास्पद किंवदंतियों को लेकर

सुनाते हैं हम एक-दूसरे को

अपनी नई रचनाएँ,

व्यथा होती है उसमें

होती है प्रवंचना,

होती है दो-चार प्राचीन कवियों की आत्माओं की

ताक में बैठी

किसी एक पेड़ की जड़,

होता है बाढ़ के बाद का नदी किनारा,

कीचड़ से छपछपाती पगडंडी

जले हुए कछार,

मोरपंख।

शुरू हो जाती है

फिर एक किंवदंती,

कभी भी कविता

पढ़ने, सुनने वाले लोग

भाँप लेते हैं

शब्दों की सिसकियों से कि

खदबदाएगा चावल बस कुछ ही देर में,

अपना-अपना मुट्ठी भर अन्न लिए

पहुँच जाएँगे ये बावरे

अपने-अपने घर।

घर में वही हँसी-ख़ुशी,

खाना-पीना, झगड़ा-झंझट, गाली-गलौज़

वही बच्चा जनने मायके गई बीवी

वही काँटों-झाड़ियों में

कोंपलें खोलतीं दूसरी ओर चढ़ती

पड़ोसी की कुम्हड़े की बेल

वही दीवार फोड़ अंदर आने की कोशिश करता धतूरा

वही बाप के आँखों का मोतियाबिंद

वही ज़मीन बिकाई, वही फटे-पुरानों के बदले वही बर्तन

और इन सबके बीच

कविता के विरुद्ध

लिखी जा रही

हमारी असंख्य कविताएँ

हमारा हंस

हमारा मेघ

हमारी दमयन्ती।

हमारे तमाम खेल।

स्रोत :
  • पुस्तक : प्रार्थना के लिए ज़रूरी शब्द (पृष्ठ 8)
  • रचनाकार : हरप्रसाद दास
  • प्रकाशन : अलोकपर्व प्रकाशऩ
  • संस्करण : 2003

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