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मसला

masla

यतीश कुमार

और अधिकयतीश कुमार

    रात हमेशा से

    दो तारीख़ों का मसला है

    जो दिन के उजाले में कभी नहीं होते

    अक्सर यह भी सोचता हूँ

    कि सारे मसलात

    कमबख़्त रातों के साथ ही क्यों होते हैं!

    एक बातूनी लड़की

    अचानक गुपचुप बैठ जाए

    तो मसला दिन में भी पैदा हो जाता है

    आग कब की बुझ गई

    राख देर तक सुलगती रही

    मसला दरअस्ल एक चुनाव है

    तिल-तिल जलने

    और एकबारगी जल जाने के बीच

    जबकि मन है

    कि निरंतर जलता जा रहा है

    पूरी तरह से बुझ जाने के सच को

    ख़ारिज करता हुआ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : यतीश कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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