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महानगर की रात

mahangar ki raat

सविता भार्गव

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महानगर की रात

सविता भार्गव

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    जितना विराट है यह महानगर

    उतनी ही विराट और अँधेरी है इसकी रात।

    आज रात बरसता रहे, बरसता ही रहे पानी

    जागता रहे पानी मेरे साथी...

    गहरी नींद में सोए लोगों के इस घर में

    अकेली जागती मैं घुला रही हूँ अपनी नींद

    बरसते पानी में।

    मैं बह जाना चाहती हूँ

    सबके घरों, दरवाज़ों और देहरियों तक।

    मैं दिन को खींचकर

    मिला देना चाहती हूँ

    भीगी रात में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : किसका है आसमान (पृष्ठ 18)
    • रचनाकार : सविता भार्गव
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2012

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