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चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती

champa kale kale achchhar nahin chinhti

त्रिलोचन

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चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती

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    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा ग्यारहवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती

    मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह जाती है

    खड़ी-खड़ी चुपचाप सुना करती है

    उसे बड़ा अचरज होता है :

    इन काले चिन्हों से कैसे ये सब स्वर

    निकला करते हैं

    चंपा सुंदर की लड़की है

    सुंदर ग्वाला है : गायें-भैंसे रखता है

    चंपा चौपायों को लेकर

    चरवाही करने जाती है

    चंपा अच्छी है

    चंचल है

    भी है

    कभी-कभी ऊधम करती है

    कभी-कभी वह क़लम चुरा देती है

    जैसे तैसे उसे ढूँढ़ कर जब लाता हूँ

    पाता हूँ—अब काग़ज़ ग़ायब

    परेशान फिर हो जाता हूँ

    चंपा कहती है :

    तुम कागद ही गोदा करते हो दिन भर

    क्या यह काम बहुत अच्छा है

    यह सुनकर मैं हँस देता हूँ

    फिर चंपा चुप हो जाती है

    उस दिन चंपा आई, मैंने कहा कि

    चंपा, तुम भी पढ़ लो

    हारे गाढ़े काम सरेगा

    गांधी बाबा की इच्छा है—

    सब जन पढ़ना-लिखना सीखें

    चंपा ने यह कहा कि

    मैं तो नहीं पढ़ूँगी

    तुम तो कहते थे गांधी बाबा अच्छे हैं

    वे पढ़ने लिखने की कैसे बात कहेंगे

    मैं तो नहीं पढ़ूँगी

    मैंने कहा कि चंपा, पढ़ लेना अच्छा है

    ब्याह तुम्हारा होगा, तुम गौने जाओगी,

    कुछ दिन बालम संग साथ रह चला जाएगा जब कलकत्ता

    बड़ी दूर है वह कलकत्ता

    कैसे उसे सँदेसा दोगी

    कैसे उसके पत्र पढ़ोगी

    चंपा पढ़ लेना अच्छा है!

    चंपा बोली : तुम कितने झूठे हो, देखा,

    हाय राम, तुम पढ़ लिखकर इतने झूठे हो

    मैं तो ब्याह कभी करूँगी

    और कहीं जो ब्याह हो गया

    तो मैं अपने बालम को संग साथ रखूँगी

    कलकत्ता मैं कभी जाने दूँगी

    कलकत्ते पर बजर गिरे।

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    त्रिलोचन

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    स्रोत :
    • पुस्तक : आरोह (भाग-1) (पृष्ठ 126)
    • रचनाकार : त्रिलोचन
    • प्रकाशन : एन.सी. ई.आर.टी
    • संस्करण : 2022

    यह पाठ नीचे दिए गये संग्रह में भी शामिल है

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