Font by Mehr Nastaliq Web

नया डर

naya Dar

मंगलेश डबराल

और अधिकमंगलेश डबराल

    (कन्नड़ वचन साहित्य के विद्वान एम. एम. कलबुर्गी, तर्कविद् नरेंद्र दाभोलकर और लेखक-एक्टिविस्ट गोविंद पानसरे की स्मृति में, जिन्हें अपने अलग विचारों के कारण मार दिया गया।)

    पुराने समय में डर एक जानी-पहचानी चीज़ था

    वह अक्सर किसी महल से राजसी पोशाक में निकलता था

    उसके टहलने पर चारों तरफ़ सन्नाटा छा जाता

    चिड़ियाँ भी सहम कर चुप हो जातीं

    कभी वह चौराहों-बस्तियों में डुगडुगी बजाता प्रकट होता

    कहता हुआ सावधान हो जाएँ सब

    राजा उसके कारिंदों और ब्राह्मण के ख़िलाफ़ बोलना अपराध है

    काल-कोठरियाँ और मृत्युदंड के लिए रस्सियाँ तैयार हैं

    डराने के तरीक़े गिने-चुने थे सज़ाएँ भी कमोबेश नियत थीं

    अवज्ञा विद्रोह विश्वासघात

    राजन कहकर संबोधित करने पर बड़ी-छोटी सज़ा

    धर्मग्रंथों को पढ़ने–सुनने पर कानों में पिघला हुआ सीसा

    और ढीठ प्रेमियों को चिनवाने के लिए दीवारें

    ऐसा भी हुआ कि कोई कवि राजा की बेटी को पढ़ाने गया

    और उसके प्रेम में पड़ गया

    लेकिन जब उसे सज़ा देने के लिए ले जाया गया

    तो वह सुनाने लगा विरह की एक सुंदर कविता

    राजा सज़ा-वजा सब भूल गया

    उसने कवि को बेटी ब्याह दी स्वर्ण-मुहरों के साथ

    इस तरह फिरे कवि के दिन(1)

    एक बार पकड़ा गया था एक शातिर चोर

    उसने भी राजा को एक श्लोक सुनाकर मुग्ध कर दिया

    ये घटनाएँ अपवाद की तरह थीं लेकिन

    कई काव्य इन गुप्त प्रेमियों और चोरों की प्रतिभा से संभव हुए

    नया डर किसी महल से नहीं

    कहीं से भी प्रकट हो सकता है

    वह अनिश्चित अपरिभाषित है पहले के डरों से अलग

    उसके तरीक़े भी बढ़े और बदले हुए हैं

    उसका समय और जगह तय नहीं है

    वह रास्ते में किसी मोड़ पर किसी सभा में मिल सकता है

    सुबह सैर पर निकलते हुए हत्यारे की गोली के रूप में

    खाना खाते हुए हाथ के कौर और मुँह के बीच घुस सकता है

    अकाल के बीच कुसुम की तरह खिला हुआ(2)

    वह ताक़तवर मुस्कराहटों ख़ामोशियों

    और प्रेम जैसी चीज़ों में भी छिपा हुआ रहता है

    डराने का काम भी बाँट दिया गया है समाज में

    भय का एक लोकतंत्र है

    और डर उपजाना एक नया रोज़गार

    कुछ बोलने-लिखने कुछ खाने-पीने-पहनने से पहले

    लगता है कुछ है जो हमें घूर रहा है

    सज़ाएँ भी उतनी ही अनिश्चित हैं

    जो डराता है उसकी कामयाबी इस डर को बुनियादी बनाने में है

    कि कब कहाँ कौन-सा डर सामने जाएगा

    कब कहाँ कौन क्या सज़ा सुनाएगा

    और सज़ा देने वाले का सुराग़ नहीं मिल पाएगा।

    1. बिल्हण कृत ‘चौरपंचाशिका’ से राजकुमारी विद्या और सुंदर कवि का संदर्भ।

    2. तुलसीदास की चौपाई ‘भयदायक खल की प्रिय बानी/ जिमि अकाल के कुसुम भवानी’ का संदर्भ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मंगलेश डबराल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY