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नाना की साइकिल

nana ki cycle

राजेश जोशी

राजेश जोशी

नाना की साइकिल

राजेश जोशी

और अधिकराजेश जोशी

    मुझसे पहले छोटे मामा ने चलाया था इसे आख़री बार

    कितने ही बरस बीत गए मामा को विदेश गए

    तब से यह यूँ ही पड़ी थी बेकार!

    नाना ने ख़रीदा था इसे जब वे कालेज गए थे पहली बार

    नानी मुझे ज़्यादा प्यार नहीं करती थी

    लेकिन एक दिन उसने यह साइकिल मुझे दे दी

    कि ठीक-ठाक कराकर चलाना तू ही इसे!

    नाना जब डॉक्टर हुए इसी साइकिल से जाते थे अस्पताल

    पीढ़ियों में इसी तरह हस्तांतरित होती थीं

    चीज़ें, आदतें और आवाज़!

    माँ कई बार बिल्कुल नानी की तरह लगती थी

    और पिता बाबा की तरह अचकन पहनकर

    मैं साइकिल चलाते हुए नाना की तरह नहीं लगता था

    मेरी आवाज़ मेरे पिता से मिलती थी बहुत ज़्यादा

    और मेरी नाक नानी की तरह थी।

    मैं कई महीने अपने वज़ीफ़े के पैसे लगाता रहा

    इस साइकिल में

    एक एक कर बदल डाले सारे कलपुर्ज़े और रंग

    अब कोई नहीं कह सकता था इसे देखकर

    कि यह वही साइकिल है जिसे कभी नाना चलाते थे

    लेकिन आज भी सब कहते थे इसे

    नाना की साइकिल!

    नाना को मरे कितने बरस बीत गए

    मुझमें तो कुछ भी नाना की तरह नहीं

    लेकिन जब भी गाँव जाता हूँ हर कोई यही कहता है

    डॉक्टर साहब का नाती आया है

    पुरखों की पहचान से ही पुकारते हैं हम लोगों को!

    हमारी आवाज़ में बची रहती है

    हमारे पुरखों की गूँज!

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 81)
    • रचनाकार : राजेश जोशी
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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