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नमक कमबख़्त

namak kambakht

शिव कुमार गांधी

शिव कुमार गांधी

नमक कमबख़्त

शिव कुमार गांधी

मोहल्ले में फूलों वाले पेड़ नहीं हुआ करते थे सिर्फ़ पीपल या नीम होते हैं घर के बीच में खड़े बस पुरखों से

लीला जब शादी करके दूसरे शहर गई थी उसका नया घर नई तरह की कॉलोनी में था जहाँ घरों में कुछ लोग फूलों वाले पौधे भी सजा कर रखा करते थे

लीला के घर के थोड़ी दूरी पर एक गुलमोहर भी था जिसे वह अक्सर चौंक-चौंक कर देखती रहती थी लेकिन कॉलोनी नई थी और सारे घर एक जैसे थे ये बात उसे बहुत अजीब लगती थी

वहाँ लोग तो दिवारों पर ब्लैक एंड व्हाइट फ़ोटो लगा कर रखते थे ही पीतल के बर्तनों को सजा कर रखते थे बस लीला की क्रोशिए से बनाई एक डिजाइन शादी के बाद कई दिनों तक एक कमरें में लगी रही थी

लीला का चचेरा भाई जो कि लीला से प्यार करता था लीला के शहर जब वह कोई परीक्षा देने गया था लीला के घर जाकर ख़ूब रोया लीला जब उसके लिए चाय बिस्किट लेने गई थी बसंत इतनी जोर से रोया था कि पड़ोस की आंटी गई थी क्या हुआ क्या हुआ करके

फिर तो ये मज़ाक़ हो गया लीला का चचेरा भाई आया था जो कि इतना जवान होकर बिना बात दहाड़े मारकर रो रहा था

बसंत जो कमबख़्त नमक लीला की शादी के दो दिन पहले दोनों ने एक दूसरे के होंठों पर लगाया था अपने आँसुओं में बहा आया

बसंत ने देखा था लीला की दाईं आँख के पास वाले दो तिल शादी के बाद और ज़्यादा निखर आए हैं

और परीक्षा में बिंदु की परिभाषा लिखते हुए जो उसके दिमाग़ में जो कौंधा था वह लीला के घर में फैल गया।

बसंत वापस जाते हुए जब वह ठीक गुलमोहर के नीचे से गुज़र रहा था लीला ने चुपके से अपनी खिड़की में से वह दृश्य अपने हॉट शॉट कैमरे में रख लिया।

तेरह साल हो गए वह रील अभी तक धुली नहीं है।

स्रोत :
  • रचनाकार : शिव कुमार गांधी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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