सूरज का कोई भी घोड़ा
लोक के पक्ष में नहीं है
सातवाँ घोड़ा भी नहीं
घुड़साल के घोड़े
जुते हैं रथ में
निकाल दी गई हैं
जिनकी रीढ़ की हड्डियाँ
भूल चुके हैं—
हिनहिनाना
रथ में जुते घोड़े
अपंग सारथी
हाँक रहे हैं—घोड़ों को
मद में
बिना देखे
कि कौन जा रहे हैं—
कुचले
रथ के पहिए तले
अँगूठे के क़द के
सहस्रों बौने दरबारी
लगे हैं—
सूरज के यशोगान में
देव-संत-गंधर्व-अप्सरा
यक्ष नाग और राक्षस भी
रत हैं—
चाटुकार्य में
—गंधर्व गा रहे हैं
—अप्सराएँ नृत्य कर रही हैं
—निशाचर बनकर अनुचर चलते हैं
रथ के पीछे-पीछे
—नाग सजाते हैं रथ को
—यक्ष करते हैं रक्षा और
—संतों के हाथ जुड़े हैं स्तुति में
हिम-ताप-वर्षा
ऋतुओं के कालचक्र पर
नियंत्रण है—
सारथी का
सृष्टि के सारे संसाधनों पर क़ब्ज़ा है—
सूर्य रथ में लगे लोगों का
वे ही हैं—
'वीर भोग्या वसुंधरा'
सप्ताह के सातों दिन
सातों घोड़ों के नाम हैं
जो बनकर इंद्रधनुष
लुभाते हैं—
धरती के लोगों को
स्वर्ग का राजमार्ग है—
यह इंद्रधनुष
लेकिन यह राजपथ
नहीं है सुलभ
जन साधारण के लिए
वंचित जन
सदियों से भोग रहे हैं
रौरव नरक
पर नहीं करते हैं प्रतिरोध
क्योंकि धर्मशास्त्रों में बताया गया है—
'ये सब तुम्हारे पूर्वजन्मों का फल है!'
प्रतीक्षा में हैं—लोग
सैकड़ों वर्षों से
कल्कि अवतार के अवतरित होने की
जो अधर्म का नाश कर
दिलाएगा मुक्ति
षड्यंत्र है यह—
सूर्य रथ में जुटे लोगों का
ऐसा दिन धरती पर
कभी नहीं आएगा
अवतार की प्रतीक्षा में
तुम भोगते रहोगे—
नरक
वे लूटते रहेंगे
स्वर्ग का आनंद
यदि धरती पर उतारना चाहते हो स्वर्ग
तो बनना होगा तुम्हें—
आठवाँ घोडा!
क्योंकि
सूरज का कोई भी घोड़ा
लोक के पक्ष में नहीं हैं
सातवाँ घोड़ा भी नहीं!
- रचनाकार : राज्यवर्द्धन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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