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चमत्कार

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आशुतोष दुबे

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चमत्कार

आशुतोष दुबे

और अधिकआशुतोष दुबे

    कहीं कुछ कौंधा। कहीं कुछ प्रगट हुआ। कहीं कुछ लोप हुआ।

    हवा वैसे ही चली। चिड़िया वैसे ही उड़ी। जल वैसे ही बहा।

    फूल वैसे ही खिले। तारे वैसे ही उगे।

    बस उसने आँख उठाकर नज़र भर देखा। उसका हाथ

    अपने हाथों में लिया। कोई बात निकली। खपरैल से

    चूल्हे का धुआँ उठा। दो बूढ़े एक पुलिया पर बैठे।

    प्रवासी पक्षी पेड़ को शुक्रिया कह अपने देश उड़ा।

    एक अनलिखा पत्र पढ़ा। एक फोन मन में बजा।

    एक भूला हुआ स्वाद जीभ में जगा।

    इस तरह एक दैनिक चमत्कार हुआ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : यक़ीन की आयतें (पृष्ठ 116)
    • रचनाकार : आशुतोष दुबे
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2008

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