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अनंत शयन

anant shayan

अनुवाद : शंकर लाल पुरोहित

प्रसन्न कुमार पाटशाणी

और अधिकप्रसन्न कुमार पाटशाणी

    मैं बिलकुल पहचान नहीं पाया तुम्हें

    और अतः भूल हो ही गई।

    पर तूने ठीक पहचाना मुझे

    माँ जैसे पहचानती बेटे को

    बहन पहचानती भाई को

    जाया पहचान ले पति को।

    क्यों पृथ्वी का हर पुरुष

    तुम्हें चाहता, मुझे भी चाहती

    क्यों पृथ्वी की हर नारी!

    वे आएँ और बैठें मेरे बिस्तर पर

    यह मैंने कभी नहीं चाहा।

    उनके थकने तक उस दिन

    मैं तेरी ही बात कहता रहा,

    इतनी बातें कीं,

    तू हवा के झोंके-सी

    पहुँचने पर भी

    तुम्हारा स्वागत करना भूल गया,

    और तेरे जानने से पहले ही

    मैंने एक भयंकर अपराध कर डाला।

    तेरे पेट में मैं बेटा बन पैदा होता

    फिर उफनती यमुना और कुंजवन

    नारियाँ गोपी बन पागल होतीं

    मेरे नाम पर तेरे सामने

    कितनी ही शिकायतें करतीं।

    जननी जठर मेरी बेटी बनता

    उदासी में छटपटाते

    समय नन्ही हथेलियों से

    तेरा माथा सहला देता।

    मैं सावित्री बनूँ या अनसूया,

    लंगड़े पति को धकेलते हुए लूँ

    और जब चाहूँ मैं

    सूर्य-चंद्रमा को रोक लूँ।

    मेरी माँ

    तू समझ पाएगी नहीं

    कि मैं कितना चाहता तुझे।

    तेरे आलिंगन में चाँद दरक जाता,

    चुंबन में भूकंप हो जाए,

    हर क्षत में मैं तेरे लिए उपशम हूँ।

    जो आते और

    तोड़ते हैं ध्यान

    चोरी करते मेरा उदग्र यौवन

    दे मुझे वाल्मीकि बना दे

    कवि बना और योगी कर दे

    तू देख पाई

    सागर प्रमत्त होगा

    माटी दुलक उठेगी।

    ग़लतफ़हमी का शंख

    मत बजा अब,

    मेरे हृदय सिंहासन पर

    साम्राज्ञी है तू, गजराज की पीठ पर

    तेरे घूमने निकलते समय मैं बनूँगा महावत॥

    ईर्ष्या करें या अपवाद दें

    वह हमारे संपर्क में कोई विवाद की बात नहीं।

    पृथ्वी की नारी से मैं घृणा करता

    केवल तुम्हें बाद देकर

    पृथ्वी का हर सागर उथला लगे

    तुम्हें बाद देकर

    पृथ्वी की हर नदी का गीत बेसुरा लगे

    तुम्हें बाद देकर।

    हो हमारा अनंत शयन

    अंधकार के गह्वर में

    मेरे ब्रह्म से तू जन्म लेगी

    तब रेत से मैं जन्म लूँगा

    जन्म-जन्मांतर में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 230)
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : प्रसन्न कुमार पाटशाणी
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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