बाँसुरी वालों के लिए
छपरा से इलाहाबाद तक
सोनपुर से ग्वालियर तक
ग्वालियर से न जाने कहाँ-कहाँ तक
इसराफ़िल मियाँ और उनकी गोल
बेच रही है बाँसुरी
मिर्सकारी टोला से गंगा जमुना के संगम तक
बजा-बजा कर बेचते हैं वे बाँसुरी
इसराफ़िल मियाँ के अंदर बुढ़ा रही पत्नी का दुःख बजता है
उनके पोतों की उम्मीद बजती है
पीछे छूट गई
मिर्सकारी टोला के लमछर नौजवानों की
महबूबाओं के मनोरथ बजते हैं
बजते हैं दुबली-पतली किशोरियों के सपने
कि दूर देस गए पिता
रेज़गारियों से ख़रीद लाएँगे
उनके फ़िरोज़ी रंग के दुपट्टे
गंगा मैया के तट पर
नाग वासुकि की सीढ़ियों पर
ख़्वाजा की दरगाह पर
महादेवा के शिवालय पर
माखनचोर किसन कन्हैया के मंदिर की देहरी पर
इसराफ़िल मियाँ और उनकी गोल
बेच रही है बाँसुरी
वे बड़े इसरार से कहते हैं
हमारी बाँसुरी ले लो भैया-बहनों
शायद एक दिन
इसमें बजने लगे तुम्हारी पीड़ा।
- रचनाकार : रमाशंकर सिंह
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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