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मुझे तारे अभी भी बुलाते हैं

mujhe tare abhi bhi bulate hain

विमल कुमार

विमल कुमार

मुझे तारे अभी भी बुलाते हैं

विमल कुमार

और अधिकविमल कुमार

    असंख्य तारों को छूता

    अंतरिक्ष का चक्कर लगाता

    मैं पृथ्वी पर लौट आया हूँ

    यहीं है मेरी माँ

    मेरा छोटा भाई

    मेरे पिता मेरी बहनें...

    यहीं है हवा

    यहीं है पानी

    यहीं वनस्पतियाँ

    और इन सबके आख़िर में

    मेरा छोटा-सा किराए का घर

    मैं कब तक उड़ता

    तैरता कब तक

    शून्य में

    मुझे रह-रहकर दोस्त याद आते थे

    याद आती थीं बचपन की भूली हुई गलियाँ

    मैं शोर-शराबे से घबराकर

    भीड़ से डरकर

    गंध और सड़ाँध से बचते हुए

    अंतरिक्ष में करोड़ों मील दूर चला गया था

    बिना कुछ खाए-पिए

    भटकता रहा गहन अंधकार में

    मुझे नहीं मिला कहीं

    जीवन प्रदेश

    जिज्ञासाएँ थीं अनंत

    अभिलाषाएँ थीं अनंत

    आकाशगंगा का रहस्य था मेरे सामने

    पुच्छल तारों का रोमांच

    और झुरझुरी यात्रा की

    मैंने अंतरिक्ष से देखा

    पृथ्वी गोल थी चिपटी हुई

    मुझे करोड़ों लोग दिखाई दिए

    भूखे नंगे

    टूटे-फूटे लाखों मकान नज़र आए

    सभ्यता का विराट रूप दिखा

    दिखीं आदिम संस्कृतियाँ

    यह किसी भी शरीफ़ आदमी का संसार नहीं था

    लेकिन लोग इसी में रहते थे

    मेरी पत्नी मुझे पत्र लिखती रही

    अपने संताप का वर्णन करती रही

    प्रार्थना करती रही लौट आने के लिए

    जहाँ कहीं भी होऊँ मैं

    लेकिन मैं पृथ्वी पर नहीं था

    मेरे बच्चे ग़ुब्बारे उड़ा-उड़ाकर

    मुझे संदेश देते रहे

    और मैं लौट आया

    ख़ुद को पहचानते हुए

    पृथ्वीवासियो! मैं यहाँ गया हूँ

    मुझे अपने घर का नल ठीक करवाना है

    मुझे बच्चे की फ़ीस जमा करनी है

    मुझे अपनी छाती में जमे कफ़

    और बलग़म को दूर करना है

    मुझे और भी ज़रूरी काम है

    पत्र लिखने और लोगों से मिलने के सिवाय

    मुझे अभी भी ग्रह याद आते हैं

    याद आते हैं नक्षत्रों के हाव-भाव

    उल्काओं का गीत मैं नहीं भूलता

    शनि का छल्ला घूमता रहता है

    ज़ेहन में

    शहर की एक बस्ती में

    अपने घर में पड़े-पड़े

    जब कभी रात को अंतरिक्ष में निहारता हूँ

    मुझे तारे अभी भी बुलाते हैं

    स्रोत :
    • पुस्तक : सपने में एक औरत से बातचीत (पृष्ठ 125)
    • रचनाकार : विमल कुमार
    • प्रकाशन : आधार प्रकाशन
    • संस्करण : 1992

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