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सब पूछ रहे हैं किधर दौड़ें

sab poochh rahe hain kidhar dauDen

खेमकरण ‘सोमन’

खेमकरण ‘सोमन’

सब पूछ रहे हैं किधर दौड़ें

खेमकरण ‘सोमन’

और अधिकखेमकरण ‘सोमन’

    कुछ लोग जो पीछे रह गए हैं

    मैने कहा—दौड़ते रहें भाया

    दौड़ते रहें

    पीछे रह गए लोग ऐसे पहाड़ी हैं

    पहाड़ को लूटना,

    बर्बाद करना जो नहीं जानते हैं

    जो नहीं जानते हैं रास्ते घेरकर चलना

    जो नहीं जानते हैं विकास पथ पर दौड़ना

    जो नहीं जानते हैं चकाचौंध-वकाचौंध

    जो नहीं जानते हैं जात-पाँत, छल-कपट

    जो नहीं जानते है बातें बनाना-ठगना

    या चाल-चालाकी

    ये तो जानते हैं मदद करना

    अजनबियों को आदर-सम्मान देना

    भूखों को जीभर के खाना खिलाना

    बहुत दूर से आकर

    धारे से पानी भरना

    स्थिर गाँव के

    इन लोगों का दिल-दिमाग़ भी स्थिर है

    पहाड़ की तरह

    वे सब पूछ रहे हैं किधर दौड़ें

    मैं बदल देता हूँ अपनी बात

    कहता हूँ जिधर अभी तक दौड़ रहे हैं

    गाँव के लोग हँसने लगते हैं

    हँसने लगता हूँ मैं भी

    मैं जो इनके बीच अभी नया आया हूँ

    हो जाता हूँ इन्हीं की दौड़ में शामिल अब।

    स्रोत :
    • रचनाकार : खेमकरण ‘सोमन’
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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