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मीलाद

milad

जावेद आलम ख़ान

और अधिकजावेद आलम ख़ान

    मैं लौट जाना चाहता हूँ उस बच्चे के पास

    जो सवाबो-अज़ाब से बेख़बर

    जलेबी की फ़िराक़ में अगली सफ़ की तरफ़

    बढ़ता जाता है मीलाद के बाद

    अपनी जगह छोड़ते बच्चों की अधीरता

    नागवार लगती है पिछली पीढ़ी को

    इधर बच्चा सरका

    उधर कुछ आँखों का रंग बदला

    आशंकाओं के तमाम बादल

    उसके सर पर मँडराने लगे

    अनगिनत आँखों से निकले साँप

    उसके शरीर पर रेंग रहे हैं

    डाँट अब पड़ी कि तब पड़ी

    धड़धड़ होती स्पंदन की चक्की

    वक़्त के पहिए के साथ

    साँस रोके खड़ी है

    बच्चा सरका, फिर बढ़ा

    बादल उमड़ा, फिर भरा

    भरते-भरते भारी हुआ

    फिर पिघला और खुलकर बरस पड़ा

    वर्ल्ड कप की ट्रॉफ़ी की तरह

    हमजोलियों को जलेबी दिखाता

    बच्चा मुस्कुरा उठा

    मुस्कान चेहरे दर चेहरे फिसलते हुए

    मस्जिद के आँगन गुंबद मीनारों को सहलाती हुई

    अनुभवी आँखों में भी पसर गई

    सागर मचल गए

    हरसिंगार झर गए

    रात की रानी महकने लगी

    वो महक और मुस्कान

    मैंने सँभालकर रखी थी यादों की जेब में

    पता नहीं किस गिरहकट ने हाथ की सफ़ाई से

    मुझे कंगाल कर दिया

    स्रोत :
    • रचनाकार : जावेद आलम ख़ान
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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