मेरी क़िस्मत में यही अच्छा रहा
meri qimat mein yahi achchha raha
चंद्रकांत देवताले
Chandrakant Devtale
मेरी क़िस्मत में यही अच्छा रहा
meri qimat mein yahi achchha raha
Chandrakant Devtale
चंद्रकांत देवताले
और अधिकचंद्रकांत देवताले
मैं मरने से नहीं डरता हूँ
न बेवजह मरने की चाहत सँजोए रखता हूँ
एक जासूस अपनी तहक़ीक़ात बख़ूबी करे
यही उसकी नियामत है
किराए की दुनिया और उधार के समय की
कैंची से आज़ाद हूँ पूरी तरह
मुग्ध नहीं करना चाहता किसी को
मेरे आड़े नहीं आ सकती सस्ती और सतही मुस्कुराहटें
मैं वेश्याओं की इज़्ज़त कर सकता हूँ
पर सम्मानितों की वेश्याओं जैसी हरकतें देख
भड़क उठता हूँ पिकासो के साँड़ की तरह
मैं बीस बार विस्थापित हुआ हूँ
और ज़ख़्मों की भाषा और उनके गूँगेपन को
अच्छी तरह समझता हूँ
उन फीतों को मैं कूड़ेदान में फेंक चुका हूँ
जिनमें भद्र लोग ज़िंदगी और कविता की नापजोख करते हैं
मेरी क़िस्मत में यही अच्छा रहा
कि आग और ग़ुस्से ने मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा
और मैंने उन लोगों पर यक़ीन कभी नहीं किया
जो घृणित युद्ध में शामिल हैं
और सुभाषितों से रौंद रहे हैं
अजन्मी और नन्ही ख़ुशियों को
मेरी यही कोशिश रही
पत्थरों की तरह हवा में टकराएँ मेरे शब्द
और बीमार की डूबती नब्ज़ को थामकर
ताज़ा पत्तियों की साँस बन जाएँ
मैं अच्छी तरह जानता हूँ
तीन बाँस चार आदमी और मुट्ठी भर आग
बहुत होगी अंतिम अभिषेक के लिए
इसीलिए न तो मैं मरने से डरता हूँ
न बेवजह शहीद होने का सपना देखता हूँ
ऐसे ज़िंदा रहने से नफ़रत है मुझे
जिसमें हर कोई आए और मुझे अच्छा कहे
मैं हर किसी की तारीफ़ करते भटकता रहूँ
मेरे दुश्मन न हों
और इसे मैं अपने हक़ में बड़ी बात मानूँ।
- पुस्तक : जहाँ थोड़ा-सा सूर्योदय होगा (पृष्ठ 243)
- रचनाकार : चंद्रकांत देवताले
- प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
- संस्करण : 2008
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.