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मथुरा

mathura

सत्येंद्र कुमार

और अधिकसत्येंद्र कुमार

     

    एक

    ब्रज से छूटकर 
    कितने अकेले हो गए कान्हा
    नंद बाबा छूटे यशोदा मइया छूटीं
    राधा छूटीं
    बंसी छूटी 
    गोपियाँ छूटीं
    बाल-सखा छूटे 
    उदास-सी पड़ी रही यमुना
    ग़मगीन-सा खड़ा रहा कदंब
    होली उदास रही
    गलियों का शोर थम गया 
    मथुरा को पाने में
    कितना कुछ खो दिया कान्हा ने?

    दो

    ब्रज में जीवन था
    सात रंग थे
    सात सुर थे
    गलियाँ थीं
    समूह था
    मथुरा में सत्ता थी
    नहीं थे सात रंग
    सात सुर नहीं थे
    राज पथ था।
    अकेलापन था
    षड्यंत्र था।
    सत्ता से जुड़े कृष्ण
    चाहकर भी नहीं लौट पाए
    अपनी प्यारी-सी दुनिया में
    मथुरा हमेशा बदल देता है कृष्ण को
    वहाँ जाने से घबराते हैं
    बाल-सखा सुदामा भी 
    मथुरा की तरफ़ जानेवाला रास्ता 
    कभी ब्रज की तरफ़ नहीं लौटता 
    मथुरा के अँधेरे गलियारे हमेशा 
    उन्हें भटकाते हैं
    ‘महाभारत’ से ‘द्वारका’ तक पहुँचाते हैं
    और फिर अकेले किसी जंगल में
    मृत्यु का इंतज़ार करने को छोड़ देते हैं।
    ब्रज से जुड़कर जीते हैं कान्हा
    ‘कंस’ की मथुरा ने हमेशा कृष्ण को 
    मारने का षड्यंत्र किया है—
    सुनो ब्रजवासियो,
    मथुरा में फिर कोई हलचल है!

    तीन

    कान्हा की गोपियाँ
    कान्हा की बंसी
    कान्हा की राधा 
    कभी नहीं गईं कृष्ण से मिलने मथुरा
    यह तो तय करना है कृष्ण को 
    कि वे किसके साथ हैं?
    उनके साथ जो मथुरा के मंदिरों और राजमहलों में
    राजसत्ता से जोड़कर रखना चाहते हैं उन्हें?
    या उनके साथ जो 
    ब्रज की गलियों में
    सूरदास, रहीम, रसखान के साथ
    उनका इंतज़ार कर रहे हैं?

    उस राधा के साथ 
    जो आज भी उनकी मुरली को, 
    उनके गीतों को, 
    अपनी साँसों में बसाए रखा है?
    उन ब्रजबालाओं के साथ 
    जो आज भी अकेले में बैठे-बैठे
    चौंक जाती हैं, मुस्कुराती हैं
    जैसे अभी-अभी कान्हा ने आकर 
    कुछ कह दिया हो कान में
    वह आज भी विनती करती हैं मथुरा से
    ‘कि किसी तरह मेरे कान्हा को लौटा दो’
    उन बाल सखाओं के साथ
    जिन्होंने उनके अंदर समूह की ताक़त का एहसास कराया?
    और अब कृष्ण से ज़्यादा यह कौन जान पाएगा 
    कि समूह के बिना
    संगीत के बिना 
    ब्रज से दूर हटकर 
    सत्ता उन्हें कितना अकेला बना देती है
    जहाँ षड्यंत्र, झूठ, घृणा और युद्ध के अलावा
    कुछ नहीं बचता।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हे गार्गी (पृष्ठ 22)
    • रचनाकार : सत्येंद्र कुमार
    • प्रकाशन : रश्मि प्रकाशन
    • संस्करण : 2018

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