हम बड़े शहर के लोग
इज़्ज़त से ज़िंदगी गुज़ारने की ख़ातिर
‘रोबोट’ की तरह चलते रहते हैं
घर चलाने की ख़ातिर
महँगाई की चक्की में पिसते रहते हैं
घर, जिसके लिये ख़्वाब देखे
उसके पीछे दौड़ में अपनी नींद गँवा बैठे
प्यार और दूसरे सारे लतीफ़ जज़्बे
जो हमें बेहतर साबित कर सकते हैं
उन्हें हम ड्राइंग रूम में सजाकर रखते हैं
हमारे बतियाते सारे शब्दों की
डेट एक्पायर हो गई है
नए शब्द हमारे शब्दकोश में
मिस-प्रिंट हो गए हैं
हम गूंगों और बहरों की तरह
एक-दूसरे की ज़रूरत समझते हैं
जब वह किसी माहिर टाइपिस्ट की तरह
मेरे जिस्म के टाइपराइटर पर
तेज़ी से उँगलियों को हरक़त में लाता है,
तो मैं उसे वही रिज़ल्ट देती हूँ
जो उसकी माँग है!
- पुस्तक : एक थका हुआ सच (पृष्ठ 80)
- रचनाकार : अतिया दाऊद
- प्रकाशन : श्री प्रकाशन, दिल्ली
- संस्करण : 2017
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