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बाँग

bang

अनुवाद : दिनकर सोनवलकर

वा. रा. कांत

एक ताल पर एक ही लय में

हज़ारों पैरों की आहट सुन पड़ती है

सैकड़ों ध्वज हवा में फहराते हैं

दिशाओं में गूँजते हैं कोटि-कोटि स्वर

मैं कहता हूँ—

यह नए जगत् का आह्वान है

युगांतर की प्रभात-फेरी जा रही है,

देखो—यह देखो नूतन पर्व का पुण्य प्रभात

नए युग का नूतन प्रकाश,

जय-जयकार करो नव युग का।

मेरी यह घोषणा सुनकर

रास्ते की गिरती दीवारों पर की छायाएँ

पिच्च से थूकती हैं,

कहती हैं—

आज सुबह

पीछे के दड़बे में

छुरी की छाया में घूमने वाला

कसाई का मुर्ग़ भी

देता था ऐसी ही बाँग

दिवस के आगमन की

नई सुबह के फूटने की

क्या तुम्हारी आँखों के सामने भी

हलाल किए हुए

मुर्ग़ के पंख उड़ने लगे हैं?

स्रोत :
  • पुस्तक : प्रतिनिधि संकलन कविता मराठी (पृष्ठ 155)
  • रचनाकार : वा. रा. कांत
  • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
  • संस्करण : 1965

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