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मणिपुर की मुनिया के मन की बात

manipur ki muniya ke man ki baat

अरुण आदित्य

अरुण आदित्य

मणिपुर की मुनिया के मन की बात

अरुण आदित्य

और अधिकअरुण आदित्य

    माफ़ करो साहब

    मैं आपकी बेटी नहीं हूँ

    मैं आपकी कुछ नहीं हूँ

    होती, ज़रूर होती

    अगर मेरी जाति बहुमत में होती

    आपकी कुछ होती

    तो दौड़े चले आते मेरी पुकार पर

    जैसे गज़ को ग्राह से बचाने

    नंगे पाँव चले आए थे विष्णु

    जैसे सब कुछ छोड़

    पांचाली का चीरहरण रोकने

    दौड़ पड़े थे लीलाधर

    आप मेरे बाप या कुछ भी होते

    तो मेरे साथ इतना सब कुछ होने के बाद

    क्या एक भी रात चैन से सोते

    जब बेटी का हो रहा हो चीरहरण

    कौन बाप करेगा विश्वभ्रमण

    जब पुत्री का माँस नोच रहे हों हैवान

    कौन पिता परदेश जाएगा लेने सम्मान

    हर ज़रूरी काम से निवृत्त हो जाने के बाद

    कितनी शर्म, कितनी व्यथा से कहते हैं आप

    मेरी बेटियों को ज़रूर दिलाऊँगा इंसाफ़

    आपकी वाणी में जो व्यथा है

    उसके आगे हमारी तुच्छ पीड़ा क्या है

    मेरे लिए शर्मिंदा मत होइए/मुझे माफ़ कीजिए

    मैं आपकी बेटी होने से इनकार करती हूँ

    कहीं और जाकर इंसाफ़ कीजिए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अरुण आदित्य
    • प्रकाशन : बया, जनवरी-मार्च, 2024

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