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एक अभूतपूर्व रोमांचक अनुभूति

ek abhootapoorv romaanchak anubhooti

निरंतर संभावनाओं और विकल्पों में

ढूँढ़ रहा एकनिष्ठ अप्रत्याशित

जहाँ तक जा सकती है अंतिम कल्पना

वह उसे खींचकर ले आना चाहता यथार्थ में

टच भर से खुल जा रहा पूरा संसार

हर रहस्य हो रहा अनलॉक

नैनो चिप से नस-नस में छिपी खुरापाती संवेदनाएँ

धर दबोची जा रही हैं अब

मृत्यु टाली जा रही है इस सदी में

अब अमरता पास आती जा रही है

जो भी तुम्हारा ईश्वर नहीं रच पा रहा

वह सब होता जा रहा मुमकिन यहाँ अब

पेड़ पौधों जानवरों और सूक्ष्म जीवों

कुछ अलग हो पास अब शायद तुम्हारे

भाषा? पर कितने दिन...

डिकोड करने को क्या रहेगा शेष

भाषा में,

बाइनरी डेसिमल में अंटते जा रहे

सभी व्याकरणिक कलाप

हम जो चाहते हैं और जो बकते हैं

उस भाषा में अब कोई अंतर नहीं रह गया

तो फिर अब बचा क्या

कवि ने कुछ रचा क्या?

कुछ अलग कुछ नया कुछ मौलिक

उफ़्फ़ कितना कठिन!

कुछ भी तो नहीं...

पर कुछ तो हो

जो थोड़ा उलझाए फुसलाए

आँखों के सामने

सब मुमकिन होता जा रहा है

बढ़ता जा रहा हूँ मैं लगातार

एक अभूतपूर्व रोमांचक अनुभूति

खोजते जा रहा निरंतर

स्वादेंद्रियाँ अब

इतनी निष्क्रिय और उदासीन हो रहीं

कि मुझे महसूसने के लिए

कुछ अतिरिक्त जुटाना पड़ रहा,

एक विस्मयहीन संसार में

रोज़ बढ़ता जा रहा हूँ मैं

यहाँ कुछ भी होना अब चकित नहीं करता

आश्चर्य होने का षड्यंत्र

ख़ुद करना पड़ रहा

मेरा मनुष्य होना

निरंतर आश्चर्यहीन होता जा रहा है।

स्रोत :
  • रचनाकार : केतन यादव
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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