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माँ

man

मलयज

मलयज

माँ

मलयज

और अधिकमलयज

    माँ बोलती हैं सुनती हैं

    दरवाज़े बंद भीतर नसों के जाल में झनझनाती चुप्पी

    बाहर एक चमक में लिख जाती है

    सूखी ज़मीन

    माँ रोती नहीं

    हर तरफ़ गुपचुप पगुराते ओठ हैं और चौखट पर

    दूर से ही पाँवों की फिसलन सुनाई पड़ती है

    कोई शब्द कहीं फिसल पड़ा है

    माँ उसे उठाकर शब्द के पास ही रख देती हैं ज्यों का त्यों

    फिर हमारे पास आकर बैठ जाती है

    माँ खोती भी नहीं

    अपनी याददाश्त हमारे चेहरों की

    हाँ, आँखें उनकी खो चुकी हैं वह जो सिर्फ़ हमारा हो कर

    रह गया है

    माँ ने उसे नहीं सृजा

    तपिश

    और उसमें से फूटती जलती ज़मीन की

    साँस

    स्रोत :
    • पुस्तक : अपने होने को अप्रकाशित करता हुआ (पृष्ठ 36)
    • रचनाकार : मलयज
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 1980

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