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ममता

mamta

दर्शन खटकड़

और अधिकदर्शन खटकड़

    पूर्व से लेकर पश्चिम तक

    रास्ता तय किया माँ ने...

    उस समय जब मेरे हाथ

    हथियारों के अभ्यस्त नहीं थे

    काले-कलूटे खाने को आते

    अँधेरे में जाने से

    चेतावनी देती, रोकती रहती।

    थोड़ा दिन छिपने के बाद

    जब आता मैं, अर्ज करके मन्नतें माँगती

    ख़ुद को सूली पर लटकाती

    लेकिन आज

    याराना है लोहे के साथ हमारा

    इसका असर भी

    उस दिल पर चढ़ चुका है

    आज माँ की ममता भी

    बेटे के सफ़र संग चल दी है।

    आज मैं जब रात के समय

    जन्मभूमि में मिलता हूँ

    मुझे सलाहें देती लाखों

    स्कूल बदलना, छिपने के रास्ते

    सब राहें मैं, साथ सहेजूँ

    ...सो जाने के बाद।

    मुर्ग़ा बोले, आग सुलगाता

    फ़ौजी बेटे के लिए खान-पान की

    जुगत करे और शीत रात में

    निपट अकेली कुँए पे पँहुचे

    अंत पहर को संदेश दे

    सजग आँख चेतावनी देकर

    अच्छा पुत्तर कहकर

    वापस लौटी, कहती जाए

    “समय बेटा, जल्दी...जल्दी...।”

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 239)
    • रचनाकार : दर्शन खटकड़ कवि के साथ फूलचंद मानव और योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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