सब उन्हें मईया कहते थे
मैं भी
मईया जब एक दिन मर गईं
और उनके ब्रह्मभोज के लिए
नाम जानने की पड़ी ज़रूरत
पड़पोतों को नहीं याद आया उनका नाम
मईया का नाम जानने के लिए
ख़सरा-खतौरी के काग़ज़ निकाले गए
पोतों के पिता मईया की ज़मीन अपने नाम करा
जा चुके थे दुनिया से
मईया पुरनिया थीं
बूढ़े पुरनिया का नाम बूढ़ पुरनिया ही होता है
मईया के स्तन इतने भारी थे कि
बच्चे उन्हें कटहल या कद्दू समझते
वे देखना चाहते थे उनके स्तनों को
औरतों की मानें तो वे जादुई थे
अपने ही बेटों-बेटियों को नहीं
घर-परिवार के कई बच्चों की ख़ुराक थी उनमें
जिन माँओं की छातियों में दूध नहीं होता
वे मईया के पास भेज देतीं थीं उन्हें
मईया ने कभी ब्रा नहीं पहनी
उनके स्तन बाहर लटकते रहते कुर्ती के
मईया हँसतीं तो वे भी गति में आ जाते
लोगों का ठीक-ठाक मनोरंजन होता
मनोरंजन करते लोगों ने
पहले मईया के गहने तोड़वाए
फिर ज़मीनें और खेत बिकवाए
सबको अपनी औलाद मानने वाली मईया
बीमार पड़ी तो अकेली हो गईं
उनके स्तनों पर मक्खियाँ भिनभिनातीं
उनका दूध पीने वाले रास्ता बदल लेते
सबका जीवन अँजोर करके
अँधेरे कमरे में मर गईं मईया एक दिन।
- रचनाकार : प्रीति चौधरी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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