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मैंने निवेदन किया

mainne nivedan kiya

अनुवाद : प्रवीण पण्ड्या

हर्षदेव माधव

हर्षदेव माधव

मैंने निवेदन किया

हर्षदेव माधव

और अधिकहर्षदेव माधव

    'मैंने निवेदन किया जल से-

    'बहो, यह बहने की वेला है, वर्षा ऋतु है।'

    किंतु उसने कहा-

    'अरे' उतावलापन क्यों-

    जाना ही तो है कुछ समय बाद।

    अंत में तो समुद्र का खारा हृदय ही शरण्य है।'

    पर, गई ग्रीष्म की प्यास।

    जल का स्वप्न ध्वस्त हो गया

    समुद्र जाने का।

    'मैंने निवेदन किया पुष्पों से-

    'खिलो! प्रातः काल है यह।'

    उदंड पुष्प कह रहे थे कि-

    'क्या मतलब जल्दीबाज़ी से?

    खिलने के बाद दूषित करेंगे भँवरें।

    सूरज आकाश के बीच पहुँच जाए,

    तब खिलेंगे हम।'

    पर, अविकसित पुष्प झड़ गए

    आँधी जाने से।

    'मैंने निवेदन किया यौवन से-

    'जागो, खिलो, मिलो सहचर यौवन से,

    संगमन करो, प्रज्वलित हो, प्रकाशित, कर दो सब कुछ

    चमको, बहो, फैलो, सुगंध के साथ' इत्यादि-इत्यादि

    किंतु रस्सी से बँधी नाव-जैसा यौवन

    देख रहा है समुद्र के किनारे को, उसके ज्वार को।

    आलसी पक्षी की तरह (वह) पाँखें होते हुए भी

    बैठा रहता है गगन-गमन के

    मुहूर्त की प्रतीक्षा में।

    हताश यौवन! यदि तू देख सके,

    छिद्र वाले घड़े से टपकते जल को!

    (बीतती है आयु, जैसे फूटे घड़े से पानी-भर्तृहरि)

    देख सके यदि

    पुष्पों से उड़ रही/समाप्त होती

    सुगंध को।

    रे निकम्मे यौवन! देख सके तो देख ले

    पेड़ से जाते हुए

    बसंत को।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तेरे स्पर्श-स्पर्श में (पृष्ठ 17)
    • रचनाकार : हर्षदेव माधव
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2016

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