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मैं जहाँ खड़ा था

main jahan khaDa tha

आग्नेय

आग्नेय

मैं जहाँ खड़ा था

आग्नेय

और अधिकआग्नेय

    मैं जहाँ खड़ा था

    वहाँ दरवाज़ा ही नहीं था

    जो खुल जाता सिम-सिम कहने से

    मैं जहाँ जाना चाहता था

    वहाँ कोई रास्ता ही नहीं था

    जो किसी के चलने से

    कट जाता

    मुझे जिस दीवार को

    फाँदना था

    वह दीवार थी ही नहीं वहाँ

    मैं जिस घर में रहता था

    उसकी खिड़कियाँ खुली हैं

    जैसी लगती थीं

    उनमें उस पार देखो

    कुछ भी नहीं दिखता था

    अब मैं जिस जगह खड़ा हूँ

    याचना की मुद्रा में

    वहाँ प्रेम खड़ा है

    और बिल्कुल उसके पीछे

    छिपा है मेरा दु:ख

    अपने हाथों में

    दुधारी तलवार लिए

    और कोई आता नहीं है कहीं से

    मुझे बचाने के लिए

    स्रोत :
    • पुस्तक : भूल गए शब्द लिखना (पृष्ठ 98)
    • रचनाकार : आग्नेय
    • प्रकाशन : पहले पहल प्रकाशन
    • संस्करण : 2011

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