विचारों का विस्तार इस तरह हुआ—
जिस दिशा में
एक मरियल आदमी
मुरम खोद रहा
दिन भर से धूप में
पुरानी ज़ंग खाई
लोहे जैसी मज़बूत
मुरमी तपती ज़मीन से
उस आदमी के साथ
एक लड़का
आबादी जैसा भूखा
उघारा दुबला
खुदी हुई मुरम को जो
घमेले में भरकर
बैलगाड़ी में डाल रहा
उन दोनों तक पहुँचने के लिए
पेड़ की छाया
शाम-शाम को बहुत चाहकर
उनकी दिशा में
कुछ लंबी होकर रह गई।
बुलबुल तो गाने वाला
भूरे रंग का फूल
खंजन मैना भी पेड़ में
इसीलिए तो उड़ गई।
दु:ख हुआ हरे-भरे पेड़ से
कि पत्तियाँ सैकड़ों
आकर बैठ गई होंगी झुंड में
चिड़ियों के साथ
हरि पत्तियों का बसेरा
वह जो अब इसलिए पेड़ हरा
एक पत्ती एक चिड़िया लगी
पीली पत्ती
जो पेड़ से अलग हुई हवा में
गिर पड़ी चिड़िया पीली
एक पत्ती गई
एक पत्ती की छाया गई।
पेड़ में स्थिर बैठी चिड़िया
पेड़ के हिस्से के समान
और पेड़ पर बैठने के लिए
कहीं दूर उड़ती चिड़िया भी
पेड़ का उगा हुआ विस्तार
हवा में उड़ता
सीटी-सी बजा
ओझल हुआ।
—एक चिड़िया गई
एक चिड़िया की छाया गई
पेड़ की छाया
टुकड़े-टुकड़े
चिड़ियों की छाया होकर
चली गई चिड़ियों के साथ।
उड़कर चली जाएगी हरियाली
हरी पत्तियों का झुंड
हरी झाड़ी
असंख्य बीज
चिड़ियों के झुंड के साथ
भरी नदी के किनारे
जंगलों में,
बाक़ी होगा ठूँठ
इस चटियल मुरमी मैदान पर
हरियाली गई
हरियाली की छाया गई।
दृश्य धुँधले हैं
धुँधलके में,
एक-एक कर नहीं
एक साथ धीरे-धीरे
जो दिख रहा है
वह धुँधला
जो ओझल
धुँधलके में ओझल है।
चिड़िया बहुत छोटी
धुँधला आकाश भी
धुँधला एक तारा
धुँधलके में शाम का,
पर दूर से आती हुई
ओझल बैलगाड़ी के
बैलों की घंटी की आवाज़
कहाँ धुँधली
इसीलिए तो
एकबारगी दिखने वाली
शाम के तारे पर दृष्टि गई
कि घंटी वही तारा है
धुँधले आसमान के गले में काँसे की,
पर जितना बड़ा गला आसमान का
उस हिसाब से
घंटी छोटी है
चंद्रमा ठीक है।
आसमान छुट्टा
पता नहीं किसने छोड़ा
जुगाली करता हुआ पसरा
सारी दुनिया की हरियाली में
मुँह मार सकने लायक़
भारी भरकम
सारी फ़सलें
सारे जंगल
उसकी तरफ़ उन्मुख
वह धीरे-धीरे आता हुआ
ज़मीन की तरफ!!!
अगर जहाँ का तहाँ
तो बँधा हुआ खूँटे में है,
जुतने के लिए कभी
मुरम खोदने वाले की
बैलगाड़ी में
और यदि आ रहा होगा
तो शायद जुत गया होगा
जोड़ी के लिए
दूसरा आसमान भी
साथ होगा।
एकदम सन्नाटे में
उभरकर
स्पष्ट
बैलगाड़ी के आने की आवाज़ का
इस तरह विस्तार हुआ
—एक अकेला पेड़
पथरीले मैदान पर
निपट अकेला होता है
अंकुर से होकर
सूख जाने तक
उसी जगह
वहीं हिलता-डुलता
पिंजड़े में एक हरा तोता जैसा
दो पेड़
ज़्यादा से ज़्यादा
पिंजड़े में
जोड़े जैसे होंगे।
—सब तरफ़ जाने के लिए
पेड़ का क़दम अगला
एक दूसरा पेड़ ही होगा
एक पेड़ का
आगे बढ़ते जाने का मतलब
सिलसिला पेड़ों का
संगठन की हरियाली का सुख।
—पहाड़ जैसा
स्थाई
रुका हुआ
बढ़ जाता है
दीवाल की तरह
श्रेणियों में संगठित,
—सतपुड़ा की श्रेणी
विंध्याचल
संगठित हों हम भी
पर नहीं छोड़नी हमको
ख़ैबर की घाटी
ख़ाली कोई जगह,
हिमालय से बेहतर।
—बाहर यदि कहीं
धूप में
टँगा तोते का पिंजरा
तब भी पिंजड़े के अंदर होता है
ऊपर से
पिंजड़े की छाया के अंदर
तोते की छाया होगी
पिंजरे की छाया में
एक कटोरी की छाया
मिर्ची की छाया
अधखाई होगी।
बैलगाड़ी के आने की आवाज़ का
और विस्तार
हरे-भरे पेड़ को
हरा-भरा पेड़ सोचने का
अभ्यास होना ज़रूरी है
पेड़ दिख रहा है
धुँधलके में
पर हरा भरा है
रात में भी हरा-भरा होगा
हरियाली के विश्वास का विस्तार
नन्ही चिड़िया से होगा—
एक पेड़ से दूसरे पेड़
इस मुहल्ले उस मुहल्ले
एक छोर से
अंतिम छोर
बिजली के तार
टेलीफ़ोन के खंबे
कुएँ की मुँडेर
रहट
इस तरफ़
उस तरफ़
कारख़ाने दफ़्तर
गौरय्या घर-घर
आने वाली बैलगाड़ी के
पहिए की यह घरर-घरर आवाज़।
मेरा विचार!!
भूकंप के पहले
ज़मीन के अंदर
दबी हुई गड़गड़ाहट का शक
ज़मीन में धमक
ज़मीन काँपती हुई कि
यह कोई और बैलगाड़ी है!!
मुरम भरकर ले जाने वाली नहीं
पर है
मुरम खोदने वाले की
जिसकी आवाज़ से
भयानक लू में
ठंडी लहर चली
नमी और
हरियाली की गंध
नदियों, खेतों
और ख़ुशहाल आबादी वाली
हज़ारों मील के
दृश्य के
एक साथ उभरने की आवाज़
बहुत ज़ोर की
कहीं बारिश के अंदर से गुज़र
भीगी-भीगी
ठंडी हवा इधर—
उस बारिश की
पहुँची यहाँ ख़बर,
हवा में उड़ता
मीलों दूर भविष्य से
आया जैसा
एक बूँद पानी चेहरे पर
चेहरे पर पूरे पानी का अनुभव,
मेरे पते पर
एक बूँद
पूरा वातावरण जिसमें
पोस्टकार्ड
ठंडी हवाओं का
बहुत दिन बाद मिला
आने वाली सबकी कुशलता
और अनगिनत
अच्छे समाचारों का
आभास देने वाला
कोई संकेत अक्षर, संबंध अक्षर—
बारिश की एक बूँद।
चार-आठ बूँद पड़ते ही
मैंने सोच लिया
एक वाक्य
—अच्छा समय
दूसरे वाक्य फिर—
मिल-जुलकर ख़ुश बहुत।
कल की थोड़ी बेफ़िक्री
मौसम इतना अच्छा कि
खिलखिलाता लड़का अढ़ाई साल का
नंग-धडंग दौड़ता
निकल आया घर से बाहर,
पीछे-पीछे
हाथ में चड्डी लिए
दौड़ती पत्नी आई
मुझसे शिकायत करती बेटे की
सुनकर मैं
बेटे के पीछे दौड़ा
पर जान-बूझकर
धीरे-धीरे
ताकि कुछ देर उसे
आगे तक
और दौड़ने दूँ
उसके पीछे धीरे-धीरे
मैं दौड़ूँ पत्नी भी दौड़े—
बुढ़ापे में बेटे के पीछे
दौड़ नहीं पाएँगे
पर जहाँ वह होगा
साथ वहाँ होंगे आगे-आगे
मौसम इतना अच्छा।
इसी तरह बूँदा-बाँदी
कुछ देर मैं लिखता रहा!
कुछ देर मैं लिखता रहूँ
—आने वाली बैलगाड़ी में
जुते होंगे
अड़ियल बैल से बुरे दिन
मज़बूत पुट्ठे के
भारी सींग
तेल में चमकते
काले बैल
काले दिन
पसीने से भीगे
सुमेला तोड़ने की कोशिश
गाड़ी उलटा देने की फ़िराक़
पर काबू में होंगे
हाँकता होगा
मुरम खोदने वाला
और खड़ा होगा बाज़ू में लड़का
ललकारते हुए बैलों को
ताक़त से पूँछ मरोड़
''हई! हई! बईला सम्हल
गड़बड़ करने से डर
जल्दी चल
आगे बढ़।’'
मज़बूत विशाल संगठन की ताक़त से
धीमे-धीमे
बढ़ती हुई बैलगाड़ी
परंतु भविष्य के
अच्छे समय को लादकर
पहुँचने के लिए वाली गति।
लदा होगा
टूट-फूटकर पहाड़ वह
गाड़ी के एक कोने में,
जो ज़िंदगी के रास्ते में अड़ा है
रास्ता जिससे
मात्र कुछ क़दम चारों तरफ़,
रास्ता एक कमरा जैसा
बल्कि गुफा जैसा
चट्टानों से बंद।
टूटने से पहाड़ के
निकल बाहर आया होगा
पहाड़ जैसै वज़न से
सैकड़ों साल का पिछड़ा
दबा हुआ ग़रीब
छोड़कर पीछे
अपनी पुरातत्त्व हुई ग़रीबी
सारे उसके अवशेष
खंडित पैर
टूटी नाक
टूटी भुजा
बचा हुआ धड़—
पेट के साथ
शामिल होते
बारिश की दुनिया में
अपनी मज़बूत भुजाओं से
ताक़तवर कंधे पर
लेकर हल
मेड़ों से उतर
खेतों पर।
और बैलगाड़ी में होंगे
हँसते अपने सब मुस्काते
ग़रीब बुलबुल
ग़रीब खंजन मैना
ग़रीब गौरय्या
औरत बच्चे बूढ़े।
एक बच्चा जो
बैठा होगा
टूटे पहाड़ के ढेर की चोटी पर
पूछेगा दादा से—
पहाड़ को फेंक क्यों नहीं देते
गाड़ी से नीचे
मुरम की खदानों में?
'‘अरे! नहीं!!’' दादा बोलेंगे—
''रास्ते में
जगह-जगह
आदमियों की उत्सुक भीड़ मिलेगी
जिस ख़तरनाक ऊँचाई से
डरते थे
उसको मरा हुआ
टूटा-फूटा
देख लेने की
उसमें ललक होगी।''
सुनकर सब बच्चे
ख़ुश होकर ताली बजाते
दौड़ पड़ेंगे खेलने
पहाड़ के टूटने से
फूट पड़े सोते और झरनों में।
गूँजी तब विचारों के विस्तार में
गाने की आवाज़ गंभीर
मुरम खोदने वाले की भर्राई मोटी
लड़के की मधुर मीठी
उस आवाज़ का मैं
इस तरफ़ विस्तार हुआ
और गाने लगा
ज़मीन की स्थिरता के संयम से
भविष्य की ख़ुशहाली की साँसों को खींचकर
आसमान की ऊँचाई को
ध्यान में रख
मुट्ठा भींचे
धीरे-धीरे
''निकल पड़े बाहर
बेघर के बंद
खिड़की दरवाज़े से
झुग्गी-झोपड़ी
गटर नाली से,
दया और माँगे हुए वक़्त से
बाहर कूदकर
छीन लें अपना वक़्त
अपने कारख़ाने बग़ीचे
अपने घर
अपनी घास
तिनके तक
निकल पड़ें शामिल होने
उनमें
जो इकट्ठे हैं
नदी को साथ लाने
चटियल मुरमी मैदान पर।''
जल्दी ऐसी कि—
ख़ुशबू बौर की पहले आई
अमराई बाद में होने के लिए
साथियों की ख़बर पहले आई
बाद में साथी पहुँचने के लिए,
अच्छे भविष्य का विश्वास पहले
अच्छा भविष्य बाद में होने के लिए
काम करने की शुरुआत पहले
काम ख़त्म करने के लिए।
बुलबुल तो
गाने वाला
भूरे रंग का फूल
खंजन मैना भी—
इस पेड़ उस पेड़।
wicharon ka wistar is tarah hua—
jis disha mein
ek mariyal adami
muram khod raha
din bhar se dhoop mein
purani zang khai
lohe jaisi mazbut
murmi tapti zamin se
us adami ke sath
ek laDka
abadi jaisa bhukha
ughara dubla
khudi hui muram ko jo
ghamele mein bharkar
bailagaड़i mein Dal raha
un donon tak pahunchne ke liye
peD ki chhaya
sham sham ko bahut chahkar
unki disha mein
kuch lambi hokar rah gai
bulbul to gane wala
bhure rang ka phool
khanjan maina bhi peD mein
isiliye to uD gai
duhakh hua hare bhare peD se
ki pattiyan saikDon
akar baith gai hongi jhunD mein
chiDiyon ke sath
hari pattiyon ka basera
wo jo ab isliye peD hara
ek patti ek chiDiya lagi
pili patti
jo peD se alag hui hawa mein
gir paDi chiDiya pili
ek patti gai
ek patti ki chhaya gai
peD mein sthir baithi chiDiya
peD ke hisse ke saman
aur peD par baithne ke liye
kahin door uDti chiDiya bhi
peD ka uga hua wistar
hawa mein uDta
siti si baja
ojhal hua
—ek chiDiya gai
ek chiDiya ki chhaya gai
peD ki chhaya
tukDe tukDe
chiDiyon ki chhaya hokar
chali gai chiDiyon ke sath
uDkar chali jayegi hariyali
hari pattiyon ka jhunD
hari jhaDi
asankhya beej
chiDiyon ke jhunD ke sath
bhari nadi ke kinare
janglon mein,
baqi hoga thoonth
is chatiyal murmi maidan par
hariyali gai
hariyali ki chhaya gai
drishya dhundhale hain
dhundhalake mein,
ek ek kar nahin
ek sath dhire dhire
jo dikh raha hai
wo dhundhla
jo ojhal
dhundhalake mein ojhal hai
chiDiya bahut chhoti
dhundhla akash bhi
dhundhla ek tara
dhundhalake mein sham ka,
par door se aati hui
ojhal bailagaड़i ke
bailon ki ghanti ki awaz
kahan dhundhli
isiliye to
ekbargi dikhne wali
sham ke tare par drishti gai
ki ghanti wahi tara hai
dhundhale asman ke gale mein kanse ki,
par jitna baDa gala asman ka
us hisab se
ghanti chhoti hai
chandrma theek hai
asman chhutta
pata nahin kisne chhoDa
jugali karta hua pasra
sari duniya ki hariyali mein
munh mar sakne layaq
bhari bharkam
sari faslen
sare jangal
uski taraf unmukh
wo dhire dhire aata hua
zamin ki taraph!!!
agar jahan ka tahan
to bandha hua khunte mein hai,
jutne ke liye kabhi
muram khodne wale ki
bailagaड़i mein
aur yadi aa raha hoga
to shayad jut gaya hoga
joDi ke liye
dusra asman bhi
sath hoga
ekdam sannate mein
ubharkar
aspasht
bailagaड़i ke aane ki awaz ka
is tarah wistar hua
—ek akela peD
pathrile maidan par
nipat akela hota hai
ankur se hokar
sookh jane tak
usi jagah
wahin hilta Dulta
pinjDe mein ek hara tota jaisa
do peD
zyada se zyada
pinjDe mein
joDe jaise honge
—sab taraf jane ke liye
peD ka qadam agla
ek dusra peD hi hoga
ek peD ka
age baDhte jane ka matlab
silsila peDon ka
sangthan ki hariyali ka sukh
—pahaD jaisa
sthai
ruka hua
baDh jata hai
diwal ki tarah
shreniyon mein sangthit,
—satapuDa ki shrenai
windhyachal
sangthit hon hum bhi
par nahin chhoDni hamko
khaibar ki ghati
khali koi jagah,
himale se behtar
—bahar yadi kahin
dhoop mein
tanga tote ka pinjra
tab bhi pinjDe ke andar hota hai
upar se
pinjDe ki chhaya ke andar
tote ki chhaya hogi
pinjre ki chhaya mein
ek katori ki chhaya
mirchi ki chhaya
adhkhai hogi
bailagaड़i ke aane ki awaz ka
aur wistar
hare bhare peD ko
hara bhara peD sochne ka
abhyas hona zaruri hai
peD dikh raha hai
dhundhalake mein
par hara bhara hai
raat mein bhi hara bhara hoga
hariyali ke wishwas ka wistar
nannhi chiDiya se hoga—
ek peD se dusre peD
is muhalle us muhalle
ek chhor se
antim chhor
bijli ke tar
telephone ke khambe
kuen ki munDer
rahat
is taraf
us taraf
karkhane daftar
gaurayya ghar ghar
ane wali bailagaड़i ke
pahiye ki ye gharar gharar awaz
mera wichar!!
bhukamp ke pahle
zamin ke andar
dabi hui gaDgaDahat ka shak
zamin mein dhamak
zamin kanpti hui ki
ye koi aur bailagaड़i hai!!
muram bharkar le jane wali nahin
par hai
muram khodne wale ki
jiski awaz se
bhayanak lu mein
thanDi lahr chali
nami aur
hariyali ki gandh
nadiyon, kheton
aur khushhal abadi wali
hazaron meel ke
drishya ke
ek sath ubharne ki awaz
bahut zor ki
kahin barish ke andar se guzar
bhigi bhigi
thanDi hawa idhar—
us barish ki
pahunchi yahan khabar,
hawa mein uDta
milon door bhawishya se
aya jaisa
ek boond pani chehre par
chehre par pure pani ka anubhaw,
mere pate par
ek boond
pura watawarn jismen
postakarD
thanDi hawaon ka
bahut din baad mila
ane wali sabki kushalta
aur anaginat
achchhe samacharon ka
abhas dene wala
koi sanket akshar, sambandh akshar—
barish ki ek boond
chaar aath boond paDte hi
mainne soch liya
ek waky
—achchha samay
dusre waky phir—
mil julkar khush bahut
kal ki thoDi befiri
mausam itna achchha ki
khilkhilata laDka aDhai sal ka
nang dhaDang dauDta
nikal aaya ghar se bahar,
pichhe pichhe
hath mein chaDDi liye
dauDti patni i
mujhse shikayat karti bete ki
sunkar main
bete ke pichhe dauDa
par jaan bujhkar
dhire dhire
taki kuch der use
age tak
aur dauDne doon
uske pichhe dhire dhire
main dauDun patni bhi dauDe—
buDhape mein bete ke pichhe
dauD nahin payenge
par jahan wo hoga
sath wahan honge aage aage
mausam itna achchha
isi tarah bunda bandi
kuch der main likhta raha!
kuch der main likhta rahun
—ane wali bailagaड़i mein
jute honge
aDiyal bail se bure din
mazbut puththe ke
bhari seeng
tel mein chamakte
kale bail
kale din
pasine se bhige
sumela toDne ki koshish
gaDi ulta dene ki firaq
par kabu mein honge
hankata hoga
muram khodne wala
aur khaDa hoga bazu mein laDka
lalkarte hue bailon ko
taqat se poonchh maroD
hai! hai! baila samhal
gaDbaD karne se Dar
jaldi chal
age baDh ’
mazbut wishal sangthan ki taqat se
dhime dhime
baDhti hui bailagaड़i
parantu bhawishya ke
achchhe samay ko ladkar
pahunchne ke liye wali gati
lada hoga
toot phutkar pahaD wo
gaDi ke ek kone mein,
jo zindagi ke raste mein aDa hai
rasta jisse
matr kuch qadam charon taraf,
rasta ek kamra jaisa
balki gupha jaisa
chattanon se band
tutne se pahaD ke
nikal bahar aaya hoga
pahaD jaisai wazan se
saikDon sal ka pichhDa
daba hua gharib
chhoDkar pichhe
apni puratattw hui gharib
sare uske awshesh
khanDit pair
tuti nak
tuti bhuja
bacha hua dhaD—
pet ke sath
shamil hote
barish ki duniya mein
apni mazbut bhujaon se
taqatwar kandhe par
lekar hal
meDon se utar
kheton par
aur bailagaड़i mein honge
hanste apne sab muskate
gharib bulbul
gharib khanjan maina
gharib gaurayya
aurat bachche buDhe
ek bachcha jo
baitha hoga
tute pahaD ke Dher ki choti par
puchhega dada se—
pahaD ko phenk kyon nahin dete
gaDi se niche
muram ki khadanon mein?
‘are! nahin!!’ dada bolenge—
raste mein
jagah jagah
adamiyon ki utsuk bheeD milegi
jis khatarnak unchai se
Darte the
usko mara hua
tuta phuta
dekh lene ki
usmen lalak hogi
sunkar sab bachche
khush hokar tali bajate
dauD paDenge khelne
pahaD ke tutne se
phoot paDe sote aur jharnon mein
gunji tab wicharon ke wistar mein
gane ki awaz gambhir
muram khodne wale ki bharrai moti
laDke ki madhur mithi
us awaz ka main
is taraf wistar hua
aur gane laga
zamin ki sthirta ke sanyam se
bhawishya ki khushhali ki sanson ko khinchkar
asman ki unchai ko
dhyan mein rakh
muttha bhinche
dhire dhire
nikal paDe bahar
beghar ke band
khiDki darwaze se
jhuggi jhopDi
gutter nali se,
daya aur mange hue waqt se
bahar kudkar
chheen len apna waqt
apne karkhane baghiche
apne ghar
apni ghas
tinke tak
nikal paDen shamil hone
unmen
jo ikatthe hain
nadi ko sath lane
chatiyal murmi maidan par
jaldi aisi ki—
khushbu baur ki pahle i
amrai baad mein hone ke liye
sathiyon ki khabar pahle i
baad mein sathi pahunchne ke liye,
achchhe bhawishya ka wishwas pahle
achchha bhawishya baad mein hone ke liye
kaam karne ki shuruat pahle
kaam khatm karne ke liye
bulbul to
gane wala
bhure rang ka phool
khanjan maina bhee—
is peD us peD
wicharon ka wistar is tarah hua—
jis disha mein
ek mariyal adami
muram khod raha
din bhar se dhoop mein
purani zang khai
lohe jaisi mazbut
murmi tapti zamin se
us adami ke sath
ek laDka
abadi jaisa bhukha
ughara dubla
khudi hui muram ko jo
ghamele mein bharkar
bailagaड़i mein Dal raha
un donon tak pahunchne ke liye
peD ki chhaya
sham sham ko bahut chahkar
unki disha mein
kuch lambi hokar rah gai
bulbul to gane wala
bhure rang ka phool
khanjan maina bhi peD mein
isiliye to uD gai
duhakh hua hare bhare peD se
ki pattiyan saikDon
akar baith gai hongi jhunD mein
chiDiyon ke sath
hari pattiyon ka basera
wo jo ab isliye peD hara
ek patti ek chiDiya lagi
pili patti
jo peD se alag hui hawa mein
gir paDi chiDiya pili
ek patti gai
ek patti ki chhaya gai
peD mein sthir baithi chiDiya
peD ke hisse ke saman
aur peD par baithne ke liye
kahin door uDti chiDiya bhi
peD ka uga hua wistar
hawa mein uDta
siti si baja
ojhal hua
—ek chiDiya gai
ek chiDiya ki chhaya gai
peD ki chhaya
tukDe tukDe
chiDiyon ki chhaya hokar
chali gai chiDiyon ke sath
uDkar chali jayegi hariyali
hari pattiyon ka jhunD
hari jhaDi
asankhya beej
chiDiyon ke jhunD ke sath
bhari nadi ke kinare
janglon mein,
baqi hoga thoonth
is chatiyal murmi maidan par
hariyali gai
hariyali ki chhaya gai
drishya dhundhale hain
dhundhalake mein,
ek ek kar nahin
ek sath dhire dhire
jo dikh raha hai
wo dhundhla
jo ojhal
dhundhalake mein ojhal hai
chiDiya bahut chhoti
dhundhla akash bhi
dhundhla ek tara
dhundhalake mein sham ka,
par door se aati hui
ojhal bailagaड़i ke
bailon ki ghanti ki awaz
kahan dhundhli
isiliye to
ekbargi dikhne wali
sham ke tare par drishti gai
ki ghanti wahi tara hai
dhundhale asman ke gale mein kanse ki,
par jitna baDa gala asman ka
us hisab se
ghanti chhoti hai
chandrma theek hai
asman chhutta
pata nahin kisne chhoDa
jugali karta hua pasra
sari duniya ki hariyali mein
munh mar sakne layaq
bhari bharkam
sari faslen
sare jangal
uski taraf unmukh
wo dhire dhire aata hua
zamin ki taraph!!!
agar jahan ka tahan
to bandha hua khunte mein hai,
jutne ke liye kabhi
muram khodne wale ki
bailagaड़i mein
aur yadi aa raha hoga
to shayad jut gaya hoga
joDi ke liye
dusra asman bhi
sath hoga
ekdam sannate mein
ubharkar
aspasht
bailagaड़i ke aane ki awaz ka
is tarah wistar hua
—ek akela peD
pathrile maidan par
nipat akela hota hai
ankur se hokar
sookh jane tak
usi jagah
wahin hilta Dulta
pinjDe mein ek hara tota jaisa
do peD
zyada se zyada
pinjDe mein
joDe jaise honge
—sab taraf jane ke liye
peD ka qadam agla
ek dusra peD hi hoga
ek peD ka
age baDhte jane ka matlab
silsila peDon ka
sangthan ki hariyali ka sukh
—pahaD jaisa
sthai
ruka hua
baDh jata hai
diwal ki tarah
shreniyon mein sangthit,
—satapuDa ki shrenai
windhyachal
sangthit hon hum bhi
par nahin chhoDni hamko
khaibar ki ghati
khali koi jagah,
himale se behtar
—bahar yadi kahin
dhoop mein
tanga tote ka pinjra
tab bhi pinjDe ke andar hota hai
upar se
pinjDe ki chhaya ke andar
tote ki chhaya hogi
pinjre ki chhaya mein
ek katori ki chhaya
mirchi ki chhaya
adhkhai hogi
bailagaड़i ke aane ki awaz ka
aur wistar
hare bhare peD ko
hara bhara peD sochne ka
abhyas hona zaruri hai
peD dikh raha hai
dhundhalake mein
par hara bhara hai
raat mein bhi hara bhara hoga
hariyali ke wishwas ka wistar
nannhi chiDiya se hoga—
ek peD se dusre peD
is muhalle us muhalle
ek chhor se
antim chhor
bijli ke tar
telephone ke khambe
kuen ki munDer
rahat
is taraf
us taraf
karkhane daftar
gaurayya ghar ghar
ane wali bailagaड़i ke
pahiye ki ye gharar gharar awaz
mera wichar!!
bhukamp ke pahle
zamin ke andar
dabi hui gaDgaDahat ka shak
zamin mein dhamak
zamin kanpti hui ki
ye koi aur bailagaड़i hai!!
muram bharkar le jane wali nahin
par hai
muram khodne wale ki
jiski awaz se
bhayanak lu mein
thanDi lahr chali
nami aur
hariyali ki gandh
nadiyon, kheton
aur khushhal abadi wali
hazaron meel ke
drishya ke
ek sath ubharne ki awaz
bahut zor ki
kahin barish ke andar se guzar
bhigi bhigi
thanDi hawa idhar—
us barish ki
pahunchi yahan khabar,
hawa mein uDta
milon door bhawishya se
aya jaisa
ek boond pani chehre par
chehre par pure pani ka anubhaw,
mere pate par
ek boond
pura watawarn jismen
postakarD
thanDi hawaon ka
bahut din baad mila
ane wali sabki kushalta
aur anaginat
achchhe samacharon ka
abhas dene wala
koi sanket akshar, sambandh akshar—
barish ki ek boond
chaar aath boond paDte hi
mainne soch liya
ek waky
—achchha samay
dusre waky phir—
mil julkar khush bahut
kal ki thoDi befiri
mausam itna achchha ki
khilkhilata laDka aDhai sal ka
nang dhaDang dauDta
nikal aaya ghar se bahar,
pichhe pichhe
hath mein chaDDi liye
dauDti patni i
mujhse shikayat karti bete ki
sunkar main
bete ke pichhe dauDa
par jaan bujhkar
dhire dhire
taki kuch der use
age tak
aur dauDne doon
uske pichhe dhire dhire
main dauDun patni bhi dauDe—
buDhape mein bete ke pichhe
dauD nahin payenge
par jahan wo hoga
sath wahan honge aage aage
mausam itna achchha
isi tarah bunda bandi
kuch der main likhta raha!
kuch der main likhta rahun
—ane wali bailagaड़i mein
jute honge
aDiyal bail se bure din
mazbut puththe ke
bhari seeng
tel mein chamakte
kale bail
kale din
pasine se bhige
sumela toDne ki koshish
gaDi ulta dene ki firaq
par kabu mein honge
hankata hoga
muram khodne wala
aur khaDa hoga bazu mein laDka
lalkarte hue bailon ko
taqat se poonchh maroD
hai! hai! baila samhal
gaDbaD karne se Dar
jaldi chal
age baDh ’
mazbut wishal sangthan ki taqat se
dhime dhime
baDhti hui bailagaड़i
parantu bhawishya ke
achchhe samay ko ladkar
pahunchne ke liye wali gati
lada hoga
toot phutkar pahaD wo
gaDi ke ek kone mein,
jo zindagi ke raste mein aDa hai
rasta jisse
matr kuch qadam charon taraf,
rasta ek kamra jaisa
balki gupha jaisa
chattanon se band
tutne se pahaD ke
nikal bahar aaya hoga
pahaD jaisai wazan se
saikDon sal ka pichhDa
daba hua gharib
chhoDkar pichhe
apni puratattw hui gharib
sare uske awshesh
khanDit pair
tuti nak
tuti bhuja
bacha hua dhaD—
pet ke sath
shamil hote
barish ki duniya mein
apni mazbut bhujaon se
taqatwar kandhe par
lekar hal
meDon se utar
kheton par
aur bailagaड़i mein honge
hanste apne sab muskate
gharib bulbul
gharib khanjan maina
gharib gaurayya
aurat bachche buDhe
ek bachcha jo
baitha hoga
tute pahaD ke Dher ki choti par
puchhega dada se—
pahaD ko phenk kyon nahin dete
gaDi se niche
muram ki khadanon mein?
‘are! nahin!!’ dada bolenge—
raste mein
jagah jagah
adamiyon ki utsuk bheeD milegi
jis khatarnak unchai se
Darte the
usko mara hua
tuta phuta
dekh lene ki
usmen lalak hogi
sunkar sab bachche
khush hokar tali bajate
dauD paDenge khelne
pahaD ke tutne se
phoot paDe sote aur jharnon mein
gunji tab wicharon ke wistar mein
gane ki awaz gambhir
muram khodne wale ki bharrai moti
laDke ki madhur mithi
us awaz ka main
is taraf wistar hua
aur gane laga
zamin ki sthirta ke sanyam se
bhawishya ki khushhali ki sanson ko khinchkar
asman ki unchai ko
dhyan mein rakh
muttha bhinche
dhire dhire
nikal paDe bahar
beghar ke band
khiDki darwaze se
jhuggi jhopDi
gutter nali se,
daya aur mange hue waqt se
bahar kudkar
chheen len apna waqt
apne karkhane baghiche
apne ghar
apni ghas
tinke tak
nikal paDen shamil hone
unmen
jo ikatthe hain
nadi ko sath lane
chatiyal murmi maidan par
jaldi aisi ki—
khushbu baur ki pahle i
amrai baad mein hone ke liye
sathiyon ki khabar pahle i
baad mein sathi pahunchne ke liye,
achchhe bhawishya ka wishwas pahle
achchha bhawishya baad mein hone ke liye
kaam karne ki shuruat pahle
kaam khatm karne ke liye
bulbul to
gane wala
bhure rang ka phool
khanjan maina bhee—
is peD us peD
स्रोत :
पुस्तक : कविता से लंबी कविता (पृष्ठ 29)
रचनाकार : विनोद कुमार शुक्ल
प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
संस्करण : 2001
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