वे जो जीवन को फिर से जीने लायक़ बनाते हैं
we jo jiwan ko phir se jine layaq banate hain
विष्णु नागर
Vishnu Nagar
वे जो जीवन को फिर से जीने लायक़ बनाते हैं
we jo jiwan ko phir se jine layaq banate hain
Vishnu Nagar
विष्णु नागर
और अधिकविष्णु नागर
इस संसार को मेरे जैसे लोग नहीं चलाते
जो सामने आए संकट को देखकर भकुआ जाते हैं
इसे चलाते हैं वे जो अपने प्रिय से प्रिय की
आकस्मिक और ख़ौफ़नाक हालत में हुई मौत के बावजूद
अपना होश बनाए रखते हैं
और जब उनके अपने ही रिश्तेदार, मित्र-परिचित उनकी छाती से लगकर
उनके सिर पर कंधा रखकर
फफक-फफक कर रोते हुए कहते हैं—
यह क्या हो गया रे...
भगवान ऐसा तो किसी दुश्मन के साथ भी न करे आदि कहकर
उन्हें भी रुलाने की कोशिश करते हैं
तो वे इस भावुकता की भरसक उपेक्षा करते हुए
उनसे जल्दी से जल्दी पिंड छुड़ाते हैं
और रोने के बार-बार उठते और गिरते करुण स्वरों के बीच
शांत और सुस्थिर बने रहने का प्रयत्न करते हुए लगातार सक्रिय बने रहते हैं
ताकि इंतज़ाम में कोई कोर-कसर न रह जाए
जैसे उनके लिए अपने बेटे-बेटी भाई-बहन या मित्र का उनके देखते-देखते
उनकी आँखों के सामने ठीक उस समय मर जाना कोई समस्या न हो
जब बचने की उम्मीद सबसे ज़्यादा बताई जा रही थी
बल्कि समस्या हो तमाम इंतज़ाम करना,
जिन रिश्तेदारों को आधी रात को नींद से जगाकर
मौत की ख़बर देना ज़रूरी है उन्हें फ़ोन करना,
इस वक़्त भी किसी तरह दुकान खुलवाकर बर्फ़ की सिल्ली मँगवाना,
मुर्दागाड़ी की व्यवस्था के लिए किसी से निवेदन करना,
अस्पताल से डेथ सर्टिफिकेट जल्दी हासिल करने का जुगाड़ करना,
अंतिम संस्कार की सामग्री का समय पर प्रबंध करना,
जो सुबह शोक मनाने आएँगे उनके लिए घर में बैठने की जगह बनवाना,
पर्याप्त दरियों की व्यवस्था करवाना,
जो रिश्तेदार या मित्र रात भर शव के साथ जाग रहे हैं
उनसे लगातार बैठने या आराम करने का अनुरोध करना,
सदमे से किसी की तबीयत बिगड़ रही हो
तो उसके लिए दवा आदि का इंतज़ाम करने के लिए किसी से कहना
इस संसार को फिर से जीने लायक़ और मौत को भुलाने लायक़ बनाते हैं
ऐसे ही लोग और वे भी जो लाश को कंधा देने से कभी पीछे नहीं हटते
उसे तरगटी में कसकर बाँधते हैं
उसे नहलाने ले जाते हैं
चिता पर उसे सँभालकर धीरे से रखते हैं
लकड़ियाँ चुन-चुनकर रखते हैं
और इस बात का ख़याल रखते हैं कि शव ठीक से जल जाए
वे नहीं जो केवल आँसू बहाते हैं,
सिसकियाँ भरते हैं
मरने वाले और उसके परिवार से
अपनी नज़दीकी का गौरवपूर्ण बखान करते हैं
मगर दूर इस तरह खड़े सब कुछ देखते रहते हैं
जैसे उनके हाथ-पैर ही न हों
जैसे उन्हें कुछ करना-धरना आता न हो—
मौत की परिस्थितियों के विस्तृत विश्लेषण के अलावा
वही अंत में घड़ी देखते हुए हाथ-मुँह धोकर, कुल्ला करके
मरने वाले के रिश्तेदार के कंधे पर हाथ रखकर
अपनी उपस्थिति को फिर से दर्ज कराते हुए
'कुछ काम हो तो बताना' जैसी फ़िज़ूल बातें कहकर चले जाते हैं
वे जो अपने अंदर की सारी उमड़न-घुमड़न को
सारी अनिश्चितताओं-आशंकाओं-अव्यवस्थाओं को सबके सामने व्यक्त सूनेपन को भी अव्यक्त रखने की कोशिश करते हैं
मज़बूत बने रहने का अभिनय ही सही मगर करते हैं
वे सबसे ज़्यादा मानवीय हैं
और वे सब जगह होते हैं
उन्हीं के भरोसे मैं ज़िंदा हूँ
मेरे बाद वही सामान्य बनाएँगे सब कुछ
हो सकता है आप उन्हीं में से एक हों।
- रचनाकार : विष्णु नागर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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