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लव जिहाद

lawa jihad

प्रियदर्शन

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लव जिहाद

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और अधिकप्रियदर्शन

     

    एक

    लड़के पिटेंगे और लड़कियाँ मारी जाएँगी
    इस तरह संस्कृति की रक्षा की जाएगी, सभ्यता को बचाया जाएगा
    किसी ज़रूरी कर्तव्य की तरह अपनों के वध के बाद 
    भावुक अत्याचारी आँसू पोछेंगे
    प्रेम पर पाबंदी नहीं होगी
    लेकिन उसके सख़्त नियम होंगे
    जिन पर अमल का बीड़ा वे उठाएँगे
    जिन्होंने कभी प्रेम नहीं किया
    जो बोलेंगे, उन्हें समझाया जाएगा
    जो चुप रहेंगे उन्हें प्रोत्साहित किया जाएगा
    जो प्रशंसा करेंगे उन्हें प्रेरित किया जाएगा
    जो आलोचना करेंगे, उन्हें ख़ारिज और ख़त्म किया जाएगा। 

    धर्म के कुकर्म के बाद पैसे के बँटवारे को लेकर पीठ और पंठ का झगड़ा
    राजा सुलझाएगा,
    और पुरोहितों-पंडों, साधुओं की जय-जयकार पाएगा
    राष्ट्र कहीं नहीं होगा, लेकिन सबसे महान होगा
    धर्म कहीं नहीं होगा, लेकिन हर जगह उसका गुणगान होगा
    एक तानाशाह अपनी जेब में चने की तरह उदारता लिए चलेगा
    और मंचों और सभाओं में थोड़ी-थोड़ी बाँटा करेगा
    उसके पीछे खड़े सभासद उच्चारेंगे अभय-अभय
    और
    पीछे अदृश्य भारी हवा की तरह टँगा रहेगा विराट भय।
    इस पाखंडी-क्रूर समय में 
    प्रेम से ही आएगा,
    वह विवेक, वह संवेदन, वह साहस, 
    जो संस्कृति के नाम पर प्रतिष्ठित की जा रही बर्बरता का प्रतिरोध रचेगा। 

    दो

    और सँकरी हो गई है प्रेम की गली,
    गली के दोनों तरफ़ तरह-तरह की चमकती दुकानें सौदागरों ने जमा ली हैं
    जो प्रेम के अलग-अलग पैकेज पेश करते हैं
    इन गलियों में इत्र सूँघते, बाल सँवारते, शीशों में अपना चुपड़ा हुआ चेहरा देखते
    और प्रेम के नाम पर तरह-तरह की अश्लील कल्पनाओं से भरे शोहदे जब पाते हैं कि 
    उनकी बहनें भी सहमी-सकुचाई, दुकानों के कानफाड़ू शोर से बचती हुई
    आँखें नीची किए, किन्हीं लड़कों के साथ गुज़र रही हैं 
    तो उनके भीतर का भाई और मर्द जाग जाता है,
    अपनी कुंठित कल्पनाओं के प्रतिशोध में
    वै वैसी ही कुंठित नैतिकता की शरण में चले जाते हैं,
    उनके हाथों में लाठियाँ, साइकिल की चेन, बेल्ट, बंदूक़ें कुछ भी हो सकती हैं
    और वे घर की आबरू बचाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।

    ज़्यादा वक़्त नहीं लगता, अगले दिन प्रेम किसी पेड़ से लटका मिलता है,
    किसी तालाब में डूबा मिलता है,
    किसी सड़क पर क्षत-विक्षत पड़ा मिलता है।

    घर की दीवारें राहत की साँस लेती हैं—
    ग़मगीन पिता क्रुद्ध-उदास भाइयों की पीठ थपथपाते हैं
    कलपती हुई माँ मन ही मन करमजली को कोसती है
    बस अकेली छोटी बहन अपने कातर प्रतिरोध के बीच सहमी हुई
    छटपटाती हुई तय करती है, बचाए रखेगी वह अपना प्रेम
    किसी को पता नहीं लगने देगी और एक दिन निकल जाएगी चुपचाप,
    शीश देने को तैयार उद्धत प्रेम बचा ही रहता है। 

    तीन

    लड़कियाँ तरह-तरह से बचाए रखती हैं अपना प्रेम,
    चिड़ियों के पंखों में बाँधकर उसे उड़ा देती हैं
    नदियों में किसी दीये के साथ सिरा देती हैं
    किताबों में किसी और की लिखी हुई पंक्तियों के नीचे 
    एक लकीर खींचकर आश्वस्त हो जाती हैं 
    किसी को नहीं पता चलेगा, यह उनके प्रेम की लकीर है
    सिनेमाघरों के अँधेरे में किन्हीं और दृश्यों के बीच 
    अपने नायक को बिठा लेती हैं,
    हल्के से मुस्कुरा लेती हैं
    कभी-कभी रोती भी हैं
    कभी-कभी डरती हैं और उसे हमेशा-हमेशा के लिए भूल जाने की क़सम खाती हैं
    लेकिन अगली ही सुबह फिर एक डोर बाँध लेती हैं उसके साथ।

    अपनी बहुत छोटी, तंग और बंद दुनिया के भीतर भी वे एक सूराख खोज लेती हैं
    एक आसमान पहचान लेती हैं, कल्पनाओं में सीख लेती हैं उड़ना
    और एक दिन निकल जाती हैं
    कि हासिल करेंगी वह दुनिया जो उनकी अपनी है
    जो उन्होंने अपनी कल्पनाओं में सिरजी है
    बाक़ी लोग समझते रहें कि यह प्रेम है
    उनके लिए यह तो बस अपने को पाना है—
    सारे जोखिमों के बीच और बावजूद।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रियदर्शन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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