लकीर की समाप्ति पर एक आदमी
lakir ki samapti par ek adami
विजय देव नारायण साही
Vijay Dev Narayan Sahi
लकीर की समाप्ति पर एक आदमी
lakir ki samapti par ek adami
Vijay Dev Narayan Sahi
विजय देव नारायण साही
और अधिकविजय देव नारायण साही
लकीर की समाप्ति पर
मूर्ति नहीं आदमी है
और ये पैरों के निशान हैं
जो उसके आगे बढ़ने के दौरान निर्मित हो गए हैं
वह मुड़ कर सोच रहा है
कि इन निशानों का अस्तित्व
उसके चलने के पहले था या नहीं।
वह चाहे जितना सोचे
उसे कोई संकेत नहीं मिलेगा
लेकिन इस तरह शुबहे में पड़ जाना
उसकी आदत है।
जहाँ तक निशान बनता है
ज़मीन पुरानी पड़ जाती है
लेकिन जहाँ वह खड़ा होता है
उसके आगे सिर्फ़ एक शून्य रहता है
जो पैर पड़ते ही
ज़मीन में बदल जाता है।
आश्चर्य की बात यह नहीं है
कि इतना वह चला कैसे
आश्चर्य यह है
कि वह आज तक यह हल नहीं कर पाया
कि ये निशान उसे निर्मित करते हैं
या वह इन निशानों को निर्मित करता है।
- पुस्तक : साखी (पृष्ठ 10)
- रचनाकार : विजय देव नारायण साही
- प्रकाशन : सातवाहन
- संस्करण : 1983
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