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क्यों नहीं कर पाता?

kyon nahin kar pata?

शिवानी कार्की

शिवानी कार्की

क्यों नहीं कर पाता?

शिवानी कार्की

और अधिकशिवानी कार्की

    परसों मैंने किसी के घर का दरवाज़ा खटखटाया

    भर गए भय से वे

    कि उनके घर को लूटना चाहती हूँ मैं

    फिर कल किसी ने मेरे घर का दरवाज़ा खटखटाया

    भय से भर गई मैं भी

    कि वे मेरे घर को लूटना चाहते हैं।

    परसों मैंने किसी की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाया

    उन्हें भय हुआ कि मैं साधना चाहती हूँ स्वार्थ कोई

    फिर कल किसी ने मेरी तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाया

    मैं भी भयभीत हो गई कि वह भी

    साधना ही चाहता है मुझसे कोई स्वार्थ

    तब जबकि मेरे पास कोई साध सके

    ऐसा कुछ भी नहीं…

    आधुनिक समय पर सबसे बड़ी टिप्पणी है कि

    कविता करने वाले क्रांतिकारी फ़क़ीर होते हैं!

    सोचती हूँ मैं

    दुनिया की तमाम बीमारियों के बाद भी

    अव्वल नंबर पर आज भी

    सबसे संक्रामक है : भय…

    एक दिमाग़ से दूसरे दिमाग़ की दूरी तय करते हुए

    ‘भय’ संचरण करता है हृदय में

    विश्व इतिहास के पन्ने पलटकर देखना

    प्रजातियाँ दास बनीं मर जाने के भय से

    स्त्रियाँ दास बनीं संरक्षण के भय से

    बच्चे दास बने दाता के अभाव के भय से

    यानी समूचा मानव-इतिहास

    जिसमें पूँजीपतियों से लेकर

    मिडिल क्लास और वहाँ से भी तथाकथित दलित और

    समूची प्रकृति का आदिवासी समाज भी तलक

    भरा-पूरा किंतु विभाजित मानव-इतिहास

    सत्ता, शासन और संपत्ति के भय से

    बना दास…

    अब अर्थ, नीति, राज से परे

    आधुनिक विश्व के टेक्निकल वर्तमान में भी

    आज फिर मनुष्य ‘भय’ की चपेट में गया है

    प्रेम, संवेदना और विश्वास के अभाव के ‘भय’ से…

    जब ‘भय’ संचरण करता है हृदय में

    प्रेम और विश्वास निकल जाया करते है दूसरे दरवाज़े से

    ‘भय’ से भरा मस्तिष्क कचोटता है ख़ुद को

    कि विद्रोह, क्रोध, यक़ीन या प्रेम भी

    वह क्यों नहीं कर पाता?

    स्रोत :
    • रचनाकार : शिवानी कार्की
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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