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कुर्ता

kurta

कुमार वीरेंद्र

और अधिककुमार वीरेंद्र

    मेरे घर के सामने जो एक घर है

    उसकी छत पर एक अलगनी है

    जिस पर एक नन्हा-सा कुर्ता

    धूप में सूख रहा है

    नन्हा कुर्ता जब भीगा हुआ पसारा गया था

    तब मैंने देखा था टँगते उसे

    अब भी टँगे हुए देख रहा हूँ

    पर वह तो कब का सूख चुका एकदम

    उसे हट जाना चाहिए था कभी का

    कि धूप में अलगनी पर यूँ ही उड़ रहा है रंग

    उसे पहनने वाले बच्चे की देह में

    पहनते-पहनते उड़ता तो और बात थी

    रंग जो थोड़ा चटख़ है

    बच्चे के लिए आकर्षण और बच्चा सबके लिए

    वह भी दीखता नहीं कहीं

    वरना अपनी माँ की तमाम हिदायतों के बावजूद

    कम-से-कम एक बार तो घर आया ही होता

    मेरी बेटी के साथ खेलने-कूदने

    उसके साथ मिलकर मेरी किताबें इधर-उधर बिखेर देने

    और अंत में चले जाने के लिए

    शायद अपने माँ-बाप के साथ

    कहीं गया हुआ है

    कि स्कूल की छुट्टियाँ भी चल रही हैं

    कोई दुपहर के बाद दिखा नहीं छत पर या घर में भी

    उन्हें छुट्टियों में घूमने को कहीं जाना भी था

    कहीं आज ही तो नहीं जाना था

    कौन-सा दिन है—रविवार—शायद आज ही जाना था

    जाने की धुन में चले गए कि हड़बड़ी में

    छूट गया अलगनी पर कुर्ता नया नन्हा

    अब ऐसा तो है नहीं

    आज गए कल ही जाएँगे

    आएँगे पूरे माह-भर बाद बहुत दिनों के बाद गए हैं

    तब तक क्या ऐसे ही टँगा रहेगा कुर्ता

    नहीं बिल्कुल ऐसे ही तो नहीं टँगा रहेगा

    उसके साथ सुबह का स्पर्श होगा ओस की बूँदें भी

    दुपहर की तीखी धूप शाम की सुंदरता भी

    हवा का वैसा सहारा जब हिलेगा-डुलेगा प्यार से कुर्ता

    वैसे तेज़ झोंके भी गुज़रेंगे जिनके साथ कहीं और

    उड़ जाने का डर होगा

    उसे बग़ैर चाँदनी के उस रात में भी रहना पड़ेगा

    तब वह शायद ही किसी को दिख सके जैसे एकम का चाँद

    बारिश हुई तो वह भी भीगेगा उसके अफ़सोस और याद के साथ

    जिसने धोकर पसारा साथ ले जाने के लिए

    छूट गया साथ होने से बहुत पहले

    अब जब छूट ही गया है नन्हा कुर्ता

    रोज़ मेरी नज़र बरबस चली ही जाती है

    जी में आता है जाऊँ सीढ़ी लगा उतार लाऊँ उसे

    पर किसी का अपने घर में होने पर ऐसा सोचते सहम जाता हूँ

    और कुर्ते को सिर्फ़ देखने के लिए देखता रह जाता हूँ जैसे बच्चे को

    धीरे-धीरे कुर्ते का रंग उड़ रहा है

    सूत पुराना पड़ रहा है

    उसे कौवे—चिरई भी बैठ-बैठकर गंदा कर चुके हैं

    पता नहीं उनके आने तक

    कुर्ते में कितनी जान बची रहेगी

    और अलगनी से उतारते

    उनकी छुअन से उसमें कितनी जान समा पाएगी

    होने को यह भी हो सकता है

    बच्चा तो बच्चा उसके माँ-बाप भी पहचान पाएँ

    और उसकी जगह कोई दूसरा कपड़ा पसारने के लिए

    उसे उतार फेंकें बेझिझक

    संभवतः ऐसा भी हो कुर्ते को अलगनी से उतारने में थोड़ी देर लगे

    थोड़ी देर लगे उसकी जगह कोई दूसरा कपड़ा पसारने में

    कई बार मैंने देखा मेरी बेटी

    जब तक कुर्ते का रंग चटख रहा

    उसे पहनने वाले को याद करती रही

    अपनी छत पर मन ही मन उसके साथ खेलती रही

    पर मैं, उधर जब उनकी छुट्टियाँ ख़त्म हो रही हैं

    इधर कुर्ते और अलगनी, कुर्ते और ख़ुद के बीच

    की दूरी ख़त्म नहीं कर पाया हूँ

    ऐसा लगता है

    जैसे एक परिवार के अपनी छुट्टियों में जाने के बाद

    उसके घर में मैं अपनी छुट्टियाँ बिता रहा हूँ

    ठीक अलगनी पर टँगे कुर्ते की तरह।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विलाप नहीं (पृष्ठ 12)
    • रचनाकार : कुमार वीरेंद्र
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2005

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