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कूड़े वाली लड़की

kuDe wali laDki

राजेश शर्मा

राजेश शर्मा

कूड़े वाली लड़की

राजेश शर्मा

और अधिकराजेश शर्मा

    इसे टूटी-फूटी चीज़ों में

    फटे-चीथड़ों में

    स्याह-सन्नाटे में

    स्वप्न आते हैं

    कूड़ा बीनती लड़की अपनी उँगलियाँ

    सिलसिले कूड़े में घँसाते हुए

    भरी-पूरी चीज़ों की

    भव्यता में खो जाती है

    ...

    एक हाथ कोहनी तक

    चूड़ियों से भरा हुआ

    पीला घाघरा और लाल चूनरी

    ...

    नए बाँस की महक से

    गमकता टप्पर

    ...

    बाबा के लिए एक सतरंगी लुंगी

    और एक मोटी रोटी गेहूँ की

    खरी सिंकी

    गरम

    कूड़े वाली लड़की लकवाग्रस्त माँ को

    अपनी टाँगों में फँसा सुबह

    पाख़ाना कराती है

    बाबा के तंबाकू के लिए

    मुस्तफ़ा की दूकान पर

    घिघियाती है

    चिलम भरती है

    जुएँ बीनती है अपने

    छोटी मुन्नी के

    कूड़े वाली लड़की

    एक कनस्तर पानी के लिए

    जनता नल पर देर तक भनभनाती है :

    ‘तोर भतार माँ कीरा परैं’

    कूड़े वाली लड़की

    थकती नहीं

    उदास होती है

    कहाँ चली जाती हैं

    साबुत भरी-पूरी चीज़ें

    इस बजबजाते ढेर में आने के पहले

    देखना!

    कूड़े वाली लड़की

    एक दिन चली जाएगी

    रेल की पटरी के पार

    शहर में

    कोई होगा उधर

    उसका इंतिज़ार करता

    वह सोचती है

    कूड़े वाली लड़की

    बीनती है कूड़ा

    बुनती है स्वप्न

    ...

    दादी कहानी सुनाती थीं :

    एक बार लकड़दादा को

    कूड़े से चवन्नी मिली

    तब दिन भर

    तुरही बजी

    दादा को अठन्नी मिली

    और सारे घर में

    कच्ची चढ़ी

    कूड़े वाली लड़की सोचती है

    कैसे-कैसे दिन थे

    और उसके हाथ कूड़े में

    जल्दी-जल्दी चलते लगते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : जो सुनना तो कहना ज़रूर
    • रचनाकार : राजेश शर्मा
    • प्रकाशन : आधार प्रकाशन

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