कुछ नहीं है यह झुँझलाहट के सिवा
kuch nahin hai ye jhunjhlahat ke siwa
अजब है यह आदमी भी
कि होता है
उसे
हर रोज़ मरना
हर रोज़ जीना
कि एक दिन
जीने-मरने की इसी भट्ठी में
तबाह कर डालता है
वह
अपना सब कुछ
कि न होता है उसका जीना
न होता है उसका मरना
यहाँ तक कि
झोंक देता है वह ख़ुद को भी
इसी भट्ठी में
न होता अगर
इस दुनिया में वह
तो इसी झुँझलाहट में
तबाह होनी थी
यह
अखिल दुनिया भी
जो उसकी नहीं थी!
- पुस्तक : इस नाउम्मीदी की कायनात में (पांडुलिपि)
- रचनाकार : ऋतु कुमार ऋतु
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