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कुछ बिखरी बातें

kuch bikhri baten

अखिलेश सिंह

अखिलेश सिंह

कुछ बिखरी बातें

अखिलेश सिंह

और अधिकअखिलेश सिंह

    उसने देखा कि

    वह सर्जना को पी सकता है

    दृष्टि को रोक सकता है

    मस्तिष्क को रिक्त कर सकता है

    सुखा सकता है हृदय को

    वह हज़म कर सकता है

    अपने से उपजी हर एक चीज़ को।

    एक दिन उसकी नाक ठीक हो गई

    और उसने पाया कि

    वह अपनी गंध को भी बिल्कुल नहीं समेट सकता।

    …जो चीज़ें ख़ुशी नहीं देती हैं

    उन पर दुःख के सिवा और क्या हो सकता है

    और जब वे चीज़ें बेहद अपनी हों

    जैसे कि समझदारी।

    बहरहाल,

    मेरे सीने की मछलियाँ जीवित हैं अभी

    जैसे बर्फ़ की सिल्लियों के नीचे रहता है जीवन

    बीतता दिन दिल को बीमार नहीं कर पाया

    एक बार फिर।

    ~•~

    साँसों की धौंकनी चलती रहती है,

    समय जलता चला जाता है

    सीना बहुत तिखाई से छिलता जाता है

    हलक़ में स्मृतियों के अटकन-सी चुभन है

    हाथ बढ़ते हैं आगे,

    स्मृत को छूकर लौट आते हैं

    हृदय का पोर-पोर चटखते हुए

    फट जाने को है

    जैसे किसी रस्सी से बँधा हुआ हो चाभी भरा खिलौना।

    ~•~

    मेरा छपरा कराईन हो गया है

    अब वह दुबारा से नहीं छाया जाएगा

    और मैं,

    घर लीपने के बाद उस पर फेंक दिया गया लत्ता हूँ

    जिसे अब नहीं उतारा जाएगा

    और मुझे संतोष भी है

    कि अबकी बरखा साथ-साथ खाने के बाद

    हम दोनों ही नहीं रहेंगे।

    हम दोनों बरखा के इंतज़ार में हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अखिलेश सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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