एक चौथाई सदी पहले आया था—
कोलकाता
'जीवनानंद' की 'बनलता सेन'
और शरतचंद्र की नायिकाओं से
भेटाने की ख़्वाहिश लेकर
(पचास साल पहले हिंदी कविता-कहानियों में
ऐसी नायिकाएँ कहाँ होती थी!)
एक दिन अचानक मिल गई बनलता सेन
शंकर के 'चौरंगी' में
बुला रही थी इशारे से
डर के मारे
घुस गया था सिम्फ़नी* में
पसीने से तरबतर हो गया था
किसी तरह से नज़र बचाकर निकला
लगभग दौड़कर पहुँचा
केसी दास के रसगुल्ले की दुकान पर
गटागट पी गया
दो-तीन गिलास पानी
खाया था—
जल भरा संदेश**
अजीबोग़रीब स्थिति में मिली
शरतचंद्र की 'राजलक्ष्मी'और 'चंद्रमुखी' भी
एक नहीं, दो नहीं
दस-बीस नहीं
सैकड़ों हज़ारों की संख्या में
जब सेंट्रल एवेन्यू से
'जनसत्ता' के दफ़्तर
बीके पाल एवेन्यू जाने का
किसी ने बताया था शॉर्ट-कट रास्ता
जो गुज़रती थी
एक सँकरी गली से
सर चकरा गया था
उस गली में
देखकर—
औरतें हीं औरतें
मानो झुंड हो—
भेड़-बकरियों का
आज तक नही देखा था
कभी भी कहीं भी
एकसाथ इतनी औरतें
पहनावा भी अजीबोग़रीब सा था
...और चेहरा
मंदिर के बाहर
कूड़े पर फेंके गए
बासी कुचले फूलों सी थी
याद आ गई
कुप्रिन की 'यामा दा पिट'
मंटो की कई कहानियाँ
याद आ गया—
मुंगेर का 'श्रवण बाज़ार'
भागलपुर का 'जोगसर'
मुज़फ़्फ़रपुर का 'चतुर्भुज स्थान'
पर यहाँ तो संख्या अथाह थीं
जहाँ तक नज़र जाती थी
वहाँ तक औरतें हीं औरतें थी
पता नहीं किसने ऐसी जगहों को नाम दिया है—
'रेड लाइट एरिया'
(अ)सभ्यता की अंतहीन गली को
जब पार कर आया तो
तो किसी ने बताया कि यही है—सोनागाछी
एशिया की सबसे बड़ी 'देह-मंडी'
ओह! किसी का भी तो चेहरा तो
शरतचन्द्र की 'राजलक्ष्मी' और 'चंद्रमुखी' से
नहीं मिल पा रहा था
और ना ही मिल पा रहा था—जीवनानंद की 'बनलता सेन' से
जिसकी कल्पना
कविता और उपन्यासों को पढ़ते वक़्त
मन ने गढ़ा था।
____________
*कोलकता के चौरंगी में संगीत के कैसेट की दुकान।
**जल भरा संदेश : संदेश (मिठाई) का एक प्रकार जिसके भीतर खजूर का तरल गुड़ भरा होता है।
- रचनाकार : राज्यवर्द्धन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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