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कोई इक पेड़ तट का...

koi ik peD tat ka...

यश मालवीय

यश मालवीय

कोई इक पेड़ तट का...

यश मालवीय

और अधिकयश मालवीय

    कोई इक पेड़ तट का

    क़द हमारा नाप जाता है

    हमारी झील का समतल

    हवा में काँप जाता है

    बहुत से मिथ उजागर कर

    सवेरा धुँध में खोए

    बड़ी तस्कीन मिलती है

    अँधेरा फूटकर रोए

    जो मन को निर्वसन करता,

    वही फिर ढाँप जाता है

    ज़ेहन में बर्फ़ गिरती

    सोच में आकाश बैठे

    कोई एहसास ठिठुरा,

    गठरियों सा पास बैठे

    हमारी रूह की,

    जलती लकड़ियाँ ताप जाता है

    बहुत कुछ कौंधता है,

    कौंधकर करता किनारा फिर

    उसी इक कौंधने को

    हम नहीं पाते दुबारा फिर

    समझ पाते नहीं हम

    और अपना आप जाता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : यश मालवीय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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