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कितना बहुत होता है?

kitna bahut hota hai?

सौम्य मालवीय

सौम्य मालवीय

कितना बहुत होता है?

सौम्य मालवीय

और अधिकसौम्य मालवीय

    कितना ख़ून बहुत होता है कि

    हत्यायें, हत्यायें मानी जाएँ

    कितनी किस-किस तरह की गवाहियाँ बहुत होती हैं कि

    बलात्कार, बलात्कार माने जाएँ

    क़िस्मत की कितनी मेहरबानियाँ काफी हैं कि

    जाति, जाति, नसल-परस्ती, नसल-परस्ती मानी जाए

    यूँ तो पानी सर के ऊपर चला जाता है

    बच्चों की मच-मच भर से

    ट्रैफ़िक से ख़ून उबलने लगता है

    कुछ ही मिनटों में

    नई कार,

    साल बीतते-बीतते ही पुरानी पड़ने लगती है

    घर हर दीवाली के पास

    पोचाड़ा खोजने लगता है

    भ्रष्टाचार

    एक नैतिक प्रश्न बन जाता है झट से

    ईमेल का जवाब तुरत ना मिलने पर

    अवसाद की दवा फाँकनी पड़ती है

    काम-वाली किसी दिन ना आए तो

    आत्म-दया और अपने साथ घोर विश्वासघात का भाव पहर-पहर गहराता जाता है

    भीख के लिए बढ़े हाथों को देखकर तो

    श्रम की महिमा याद जाती है सेकण्ड भर में

    वक़्त लगता है पर धीमे-धीमे गले के नीचे उतर जाती हैं ये बातें भी,

    कि पृथ्वी सूरज का चक्कर लगाती है

    कि प्राकृतिक उद्विकास जैसी कोई चीज़ है

    या फिर पर्यावरण शायद हमारी वजह से संकट में है,

    पर कितनी मिलों पर ताले पड़ते हैं कि

    मेहनतकश, मेहनतकश माने जाएँ

    रोटियों की कितनी तहों और कितने काम-सिक्त बिस्तरों के बाद

    पत्नी पहले औरत फिर मनुष्य मानी जाए

    प्रगति के कितने अध्यायों के बाद अपनी ज़मीन के लिए

    ज़मीन से बाहर खड़ा किसान, किसान,

    और आदिवासी, आदिवासी माना जाए

    कितने कानून लगते हैं कि अपनी तय भूमिकाओं से निकलकर

    कभी उन्हीं भूमिकाओं के लिए, कभी उनसे छूटने को बेचैन

    जीवन की गरिमा के लिए जूझ रहे लोग

    षड़यन्त्रकारी ना माने जाएँ

    कितने?

    जबकि डिलीवरी ब्वॉय के क्षण भर देर कर देने से धैर्य की परीक्षा हो जाती है

    सही मौका चूकने से शेयरों में नुक़सान हो जाता है

    दिवालिया होने के कगार पे खड़ा प्रतिद्वन्दी या रिश्तेदार आगे निकल जाता है

    कितने पाँवों के पलायन

    कितनी गुमशुदगियों के बाद मन संवेदित होता है

    जबकि किसी टहलती हुई मौत की ख़बर पर शान्ति का बेजान सा ट्वीट

    रूखी उँगलियों से निकलता है और फुर्र हो जाता है

    कितना बहुत होता है? कितना?

    पल-पल की क़ीमत होती है, समझा

    पर क्या हमारे इतिहास में वेटिंग चार्जेज़ नहीं होते?

    स्रोत :
    • रचनाकार : सौम्य मालवीय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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