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खरीज

kharij

बबली गुज्जर

और अधिकबबली गुज्जर

    कॉन्वेंट में भाई को दिला एडमिशन

    दे दिया उसे नए-नए डेस्क का तोहफ़ा,

    रंग-बिरंगी, कहानियाँ सुनाती दीवारें,

    नया बस्ता किताबें, ठंडा साफ़ पानी

    और ढेर सारे ख़्वाब ला भर दिए उसकी जेबों में

    जितनी ज़्यादा जेबें, उतने ज़्यादा सपने

    मेरे पास कोई जेब थी

    तो सपनें भी मिले

    चुन लिया गया मेरे लिए सरकारी टाट

    पचासी बालकों की क्लास में

    सबसे पीछे बैठी

    टेंट की छाँव मिलती

    नीम का साया पड़ता

    बेकदरी से भूरे हुए बालों को

    समेटती रहती आधा बखत

    स्कर्ट की तुरपाई खोल

    काम चलेगा एक और बरस

    हिंदी के कायदे पढ़े, अंग्रेज़ी से कतराती

    हिंदी माँ और अंग्रेज़ी थी बाबा-सी

    तो बाबा से नज़रें चुरा माँ की ओट जाती

    गणित से घबराती थी पर

    पर जमा-घटा के निकालती हकों का उत्तर

    वक़्त के साथ भारी होता गया

    भाई का बस्ता...

    ...और मेरा मन

    उसने परकार से बनाया गोल वृत्त

    मैंने बेलन से छाप दी पृथ्वी

    खिलाया सबको, ख़ुद रख बरत

    गोल रोटी, गोल चूड़ी, गोल चंदा

    और गोल गोल पहिए बैलगाड़ी के

    बिठा जिसमें भेज दी ससुराल

    दुनिया गोल है, और मन भी

    भूली नहीं एक पल को भी

    ऐसी बातें याद रखने को बादाम की नहीं

    गुनगुनी हँसी

    और अग्नि-सी दहकती

    आँखों की ज़रूरत होती है

    चाहिए थी कुछ जेबें,

    सपने रखने की ख़ातिर

    छोटे छोटे सपने...

    तवे से उतरती, पहली रोटी का सपना

    बाबा के स्कूटर की अगली सीट का सपना

    उत्तराधिकारी के संग तनकर खड़े हुए दादा की

    तस्वीर में, उनके बगल में खड़े होने का सपना

    दादी की थैली से निकले नोट का सपना

    पर हाथ लगी हमेशा

    काली परत चढ़ी हुई कुछ

    पुराने समय की बंद हुई

    आधे-अधूरे सपनों वाली खरीज

    स्रोत :
    • रचनाकार : बबली गुज्जर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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