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खाना बनाती स्त्रियाँ

khana banati striyan

कुमार अम्बुज

कुमार अम्बुज

खाना बनाती स्त्रियाँ

कुमार अम्बुज

जब वे बुलबुल थीं उन्होंने खाना बनाया

फिर हिरणी होकर

फिर फूलों की डाली होकर

जब नन्ही दूब भी झूम रही थी हवाओं के साथ

जब सब तरफ़ फैली हुई थी कुनकुनी धूप

उन्होंने अपने सपनों को गूँधा

हृदयाकाश के तारे तोड़कर डाले

भीतर की कलियों का रस मिलाया

लेकिन आख़िर में उन्हें सुनाई दी थाली फेंकने की आवाज़

आपने उन्हें सुंदर कहा तो उन्होंने खाना बनाया

और डायन कहा तब भी

उन्होंने बच्चे को गर्भ में रखकर खाना बनाया

फिर बच्चे को गोद में लेकर

उन्होंने अपने सपनों के ठीक बीच में खाना बनाया

तुम्हारे सपनों में भी वे बनाती रहीं खाना

पहले तन्वंगी थीं तो खाना बनाया

फिर बेडौल होकर

वे समुद्रों से नहाकर लौटीं तो खाना बनाया

सितारों को छूकर आईं तब भी

उन्होंने कई बार सिर्फ़ एक आलू एक प्याज़ से खाना बनाया

और कितनी ही बार सिर्फ़ अपने सब्र से

दुखती कमर में चढ़ते बुख़ार में

बाहर के तूफ़ान में

भीतर की बाढ़ में उन्होंने खाना बनाया

फिर वात्सल्य में भरकर

उन्होंने उमगकर खाना बनाया

आपने उनसे आधी रात में खाना बनवाया

बीस आदमियों का खाना बनवाया

ज्ञात-अज्ञात स्त्रियों का उदाहरण

पेश करते हुए खाना बनवाया

कई बार आँखें दिखाकर

कई बार लात लगाकर

और फिर स्त्रियोचित ठहराकर

आप चीख़े—उफ़, इतना नमक

और भूल गए उन आँसुओं को

जो ज़मीन पर गिरने से पहले

गिरते रहे तश्तरियों में, कटोरियों में

कभी उनका पूरा सप्ताह इस ख़ुशी में गुज़र गया

कि पिछले बुधवार बिना चीख़े-चिल्लाए

खा लिया गया था खाना

कि परसों दो बार वाह-वाह मिली

उस अतिथि का शुक्रिया

जिसने भरपेट खाया और धन्यवाद दिया

और उसका भी जिसने अभिनय के साथ ही सही

हाथ में कौर लेते ही तारीफ़ की

वे क्लर्क हुईं, अफ़सर हुईं

उन्होंने फर्राटेदार दौड़ लगाई और सितार बजाया

लेकिन हर बार उनके सामने रख दी गई एक ही कसौटी

अब वे थकान की चट्टान पर पीस रही हैं चटनी

रात की चढ़ाई पर बेल रही हैं रोटियाँ

उनके गले से, पीठ से

उनके अँधेरों से रिस रहा है पसीना

रेले बह निकले हैं पिंडलियों तक

और वे कह रही हैं यह रोटी लो

यह गरम है

उन्हें सुबह की नींद में खाना बनाना पड़ा

फिर दुपहर की नींद में

फिर रात की नींद में

और फिर नींद की नींद में उन्होंने खाना बनाया

उनके तलुओं में जमा हो गया है ख़ून

झुकने लगी है रीढ़

घुटनों पर दस्तक दे रहा है गठिया

आपने शायद ध्यान नहीं दिया है

पिछले कई दिनों से उन्होंने

बैठकर खाना बनाना शुरू कर दिया है

हालाँकि उनसे ठीक तरह से बैठा भी नहीं जाता है।

स्रोत :
  • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 117)
  • रचनाकार : कुमार अम्बुज
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 2014
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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