Font by Mehr Nastaliq Web

काठ का घोड़ा

kath ka ghoDa

अनुवाद : शंकर लाल पुरोहित

जयकृष्ण बारिक

जयकृष्ण बारिक

काठ का घोड़ा

जयकृष्ण बारिक

और अधिकजयकृष्ण बारिक

    अचानक दोनों पाँवों में मेरे गई मोच।

    पेड़ के पत्ते-पत्ते में चमकता दिख गया भावी काल

    बहुत कुछ कालिमा की उत्तीर्णता और

    अज्ञात किसी पृथ्वी का प्रथम सोपान।

    पोखर के बीच रह ऊब-डूब होने का नशा छोड़

    किनारे बैठे हंस को छूने की आशा में अपने संग बात की।

    सूरज की ओर मुँह पर दरवाज़े खोले मन के सारे

    हाथ में लेकर फूल और चंदन की थाल।

    तुम सोचती रही, ये तो बेहया आदमी,

    पृथ्वी के कोलाहल, ध्वनि और नाच छोड़

    कर रहा पॉलिश अपनी देह की।

    पर आज लगता बेतुका।

    अनंत जाती निकट से बहुत दूर

    मोच खाए पाँव दुबारा मोच खाते।

    अपनी कितनी इच्छा करता मैं!

    आँखों के आगे अँधेरा उजाड़ देख

    अर्थवान करता विपन्न पलों को,

    उनका इतिहास; अपनापन समाप्त होने पर

    कहाँ इतिहास?

    यहीं मेरे कितने तीर्थ, कभी यात्रा नहीं,

    पथ नहीं, फिर भी चलना होता।

    बैशाख की चिलचिलाती धूप में गंजा कुत्ता

    दौड़ता-फिरता इधर-उधर

    किसका पीछा कर रहा?

    अतः मैं रट लेता जरा, व्याधि

    और मृत्यु का संवाद छोटे घर में लालटेन जलाकर।

    काठ का घोड़ा बुरा नहीं, उसके मन में डर नहीं,

    मस्तिष्क में भ्रम नहीं, वह देखता कई सपने,

    पानी पीकर राह चलता, दौड़ता खुले मैदान में।

    हालाँकि मेरी ख़त्म नहीं हुई

    जरा, व्याधि, मृत्यु की समीक्षा,

    चूँकि मेरी ख़त्म हुई नहीं कामना और प्रतीक्षा और

    प्रतीक्षा की नंगी आतुरता

    चूँकि मेरी ख़त्म हुई नहीं क्लांति, ग्लानि, शून्यता

    और जलन की तीव्र आकुलता।

    काठ का घोड़ा बहुत अच्छा लगता।

    मोच खाए पाँव चूँकि संदेह में

    खोजते अपना अस्तित्व,

    और सवार हो जाते काठ के घोड़े की पीठ पर,

    आखिर पाप का दीप लिए

    जलाए रखता मैं धीरे दुष्कृति के काल-पुरुष को।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 171)
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : जयकृष्ण बारिक
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए