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निर्धारण

nirdharan

अनुवाद : भालचंद्र जयशेट्टी

बसवराज सबरद

बसवराज सबरद

निर्धारण

बसवराज सबरद

और अधिकबसवराज सबरद

    इस राह पर

    बिखरे काँटों को

    उखाड़ फेंककर

    फूल बिछाने के लिए

    आया री, सखी।

    घुप अँधेरे में

    अँधेरी रातों में

    कराह रहे थे

    अपने लोग,

    ज्योत्सना के पाँवड़े बिछाकर

    रुचिर मधुपान कराने

    चँदवा को ढो लाया री, सखी।

    बदरंग चेहरे पर

    नाच रही थी निराशा

    धानी परिधान में

    महकती मुसकाती

    मल्लिका की महक

    ले आया री, सखी।

    नीले इस अंबर में

    लाली छाने तलक

    बंजर इस धरती के

    पुलकित होने तलक

    मुझे तुम्हें

    जीना होगा री, सखी।

    पी-पीकर यों

    आँसू के घूँट

    खाकर संघर्ष को ही

    बढ़ते-बढ़ते हमें

    लिखना होगा

    इतिहास नया री, सखी।

    अतः हमें

    बेशक जीना होगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविताएँ 1984 (पृष्ठ 64)
    • संपादक : बालस्वरूप राही
    • रचनाकार : बसवराज सबरद
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 1984

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