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कामना

kamna

पूनम सोनछात्रा

और अधिकपूनम सोनछात्रा

    नहीं करती किसी आदमी से प्रेम

    किसी पुराने तालाब में

    कंकर-कंकर

    गुडुप करती अपनी सारी कामनाएँ

    कछुओं से सपने कहती

    लहरों संग पकड़म-पकड़ाई का खेल खेलती

    चाँद की चिरौरी कर रोक लेती अपने हिस्से का पानी

    और फिर गहरे पानी में उतरकर

    मछलियों की भाँति

    पानी में पानी हो चुकी प्राणवायु

    अपने भीतर सोखती

    या किसी बूढ़े बरगद की जड़ों में

    छोड़ आती अपने सारे प्रेम-पत्र

    किसी शाम जब सूरज और अँधेरे के बीच की जंग

    ज़रा जल्दी हार जाता सूरज

    मैं बरगद के सारे पीले पत्ते इकट्ठे कर

    उनसे एक हवा महल बनाती

    तितलियों की परछाइयाँ पकड़ती

    तने की कोटर में मुँह छुपा

    कह डालती अपने सारे दुःख

    आसमान से उतरती जड़ों से लिपटकर

    अपने आँसुओं से उन्हें सींच देती

    नहीं करती किसी आदमी से प्रेम

    चुनती अपना एकांत

    अपने सम्मान के साथ

    स्रोत :
    • रचनाकार : पूनम सोनछात्रा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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