प्रहसन प्रारंभ होने के पूर्व ही
prahsan prarambh hone ke poorw hi
चंद्रकांत देवताले
Chandrakant Devtale
प्रहसन प्रारंभ होने के पूर्व ही
prahsan prarambh hone ke poorw hi
Chandrakant Devtale
चंद्रकांत देवताले
और अधिकचंद्रकांत देवताले
एक लाख गूँगे
शहर की सड़कों पर
चहलक़दमी कर रहे हैं
उनकी गो-गो करती आवाज़ के मतलब को
एक हज़ार टेलीप्रिंटर
केवल तीन शब्दों में उल्था कर
छाप रहे हैं
फूल, चिड़िया और नदी
और करोड़ों आँखें
इन शब्दों को बाँचते हुए
सोच रही हैं नदी में बहता हुआ फूल
शायद एक चिड़िया है
एक लाख बहरे
शहर की सड़कों पर
आवाज़ाही कर रहे हैं
उनके कानों में लगी मशीनों पर
शिलान्यास की तरह
दानदाताओं के नाम खुदे हैं
वे मशीनें ख़ुद
मानवीय शब्दों की अनुपस्थिति में
उन्हें सुना रही हैं
जनता की अदालत के ख़ुशनुमा फ़ैसले
और वे हँसते हुए बुदबुदा रहे हैं
दूध का दूध, पानी का पानी
और करोड़ों ज़ुबाने
उनकी बुदबुदाहट की पुष्टि में दोहरा रही हैं
पानी का पानी और दूध का दूध
एक लाख अंधे
न्यायालय को टटोलने
शहर की सड़कों पर टोहते चल रहे हैं
एक सौ सिपाही
आधों को अस्पताल
और शेष को जेलों में
दाख़िल करा रहे हैं
करोड़ों कान आकाशवाणी से सुन रहे हैं
अंधों को सिंहासन बत्तीसी मिल गई है
और वे शाम तक
हरिश्चंद्र कॉलोनी में पहुँचा दिए जाएँगे
एक भूमिगत गोली चालन
और एक अदृश्य लाठी चार्ज के बीच
करोड़ों लोग गिरा, नयन और श्रवन नामक
प्रसन्न प्रहसन पोस्टरों को पढ़ रहे हैं
एक कंप्यूटर
प्रहसन के प्रारंभ होने के पूर्व ही
उसकी समीक्षा का प्रतिवेदन तैयार करते हुए
शहनाई, तबले और हारमोनियम की
लयकारी का गुणानुवाद कर रहा है
और अख़बारों के लाखों दफ़्तरों में
प्रहसन की तारीफ़ में
रँग दिए जाने को
सफ़ेद पेज कोरा पड़ा है
एक अदृश्य घुड़सवार
दस्तावेज़ लेकर
हर घर पहुँच रहा है
ख़ुशख़बर में विलंब क्यों कहकर
रानी मधुमक्खी
शहद बनाने की प्रक्रिया में मशग़ूल है
और फिर से प्रकट संसार में
स्वागत दरवाज़ों के निर्माण का सिलसिला
युद्ध-स्तर पर जारी है
और मैं अपने कोट को बेच देने की हड़बड़ी में
तस्करों की बस्ती में पहुँच गया हूँ
वे इस वक़्त
स्वागत-भाषण लिखने में बेहद तल्लीन हैं
थोड़ी देर के इंतज़ार के बाद
पंचतंत्र के क़िस्से के विपरीत
कई ख़ूँख़ार कुत्ते
मुझे बेकरी जैसे दिखने लगते हैं
और सारा तंत्र
सफ़ेद रंग और फायर ब्रिगेड की
घंटियों की आवाज़ों के बीच खुलने लगता है
और मैं
अपने लोगों की तरफ़ दौड़ता हूँ
सोचते हुए
ज़ुबान से बढ़कर
इस वक़्त कोई बड़ी ताक़त नहीं है
और शाम के पहले उन्हें
हरिश्चंद्र कॉलोनी पहुँचने से रोकना है
क्योंकि यह मौत के कुएँ का
दूसरा नया गुप्त नाम है।
- पुस्तक : जहाँ थोड़ा-सा सूर्योदय होगा (पृष्ठ 87)
- रचनाकार : चंद्रकांत देवताले
- प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
- संस्करण : 2008
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