आदि-शंकराचार्य ने महातप के बाद
जब खोले होंगे चक्षु
वेदांत के अलावा देखा होगा एक और भी सत्य
वह ये कि जोशीमठ डूबेगा...
पर ये बताया नहीं किसी को
इस दूसरे सत्य में शिष्यत्व की सम्भावना नहीं थी क्या...
ना कोई विजयीभाव
फिर शायद बौद्ध मतावलंबियों को भी
इस दूसरे सत्य की भनक रही हो
गुरु परलोक सिधार गए
अपने साथ वह दूसरा सत्य लेकर
कि जोशीमठ डूबेगा...उनके आप्त वचनों में
नहीं था उन दोपहरियों का निदाघ
जिनमें डायनामाइट की थाप पर
जोशीमठ की डूब होगी...
उन रात्रियों की वेदना जब
भूमि पर दरारें कड़केंगी और
बींध जाएंगी बस्तियों को
पर सत्य तो था ही
आदि प्रवर्तक ने नहीं कहा तो क्या
सभ्यता विकसित हुई
गुरु के उस सत्य से ओट कर के
जिसे उन्होंने देखा था...पर कहा नहीं था...
अधूरे सत्य ने पंथों को जन्म दिया
पंथ मठों में पथरा गए
मठों पर बिराजे मठाधीश
मठाधीशों के आगे बिछ गए अनुयायी
और अनुयायियों ने
गुरु की झिझक पर नगर-तीर्थ बना दिए!
वह भय जो कुछ वेदांती-कुछ बौद्ध दोनों था
कि जोशीमठ डूबेगा...
डूब गया एक मूर्ख आत्मविश्वास के तले
धर्मों ने इस तरह समय-समय पर अपने हिस्से के सत्य तो कहे
पर अपनी आशंकाएं छुपा ले गए
धर्म बिना संदेह के महज़ आस्था था
जोशीमठ आस्था की राह में पड़ने वाला एक पड़ाव
फिर भी सत्य था, तो उसे गुरु अपने साथ तो नहीं ले जा सकते थे
सो उसकी पुड़िया बनाकर
एक भोटिया तिजारती के झोले में डाल दिया!
भोटिया से उसे
एक तिब्बती लामा ने कोई दुर्लभ जड़ी-बूटी जानकर कर ख़रीदा
और अपने देस ले गया
जब उसके मठ के अन्य लामाओं ने
उस दुर्लभ सी दिख रही चीज़ को सूंघा
उन्हें सुनाई पड़ा
कि कारकोरम, पामीर और किलियाँ के पहाड़ भी डूबेंगे!
और वे सन्नाटा खा गए
उन लामाओं ने तुरत उस सत्य को
आचार्य रिंपोछे यानी गुरु पद्मसंभव के चरणों पर
छोड़ आने के लिए कहा
यह सत्य की जोशीमठ डूबेगा
उन्हें एक नए संघात के साथ प्रतिध्वनित हुआ था
जैसे तरंग कटोरी से टंकृत होता हुआ
जोशीमठ डुबोया जाएगा!!
जोशीमठ डुबोया जाएगा!!
ठीक उस वक़्त जब पद्मसंभव के चरणों पर
उस सत्य का चढ़ावा हो रहा था
रेवाल-सर तीरे बैठे थे भाऊ चन्द्रकीर्ति जाधव
बाबा साहब के बुद्ध को ढूंढते-ढूंढते महायान की गलियों में
कहीं खो से गए थे
लम्बे समय तक
घनघोर उपेक्षाएं झेलने के बाद
अब घर जाने को थे...
जाते-जाते सोचा भाऊ चन्द्रकीर्ति जाधव ने
क्यूँ ना गुरु के पास से कोई स्मृति-चिह्न लेता चलूँ
कोई चिन्हानी-कोई प्रतीक...
वो धर्म जो आश्रय ना दे सका...ना अपनेपन का भाव
पर कहीं ना कहीं प्रेरणा तो रहा ही है
उनकी अपनी...उनके भीम की
उन्होंने पद्मसंभव के चरणों से
पुड़िया में फड़फड़ाता वो सत्य उठाया
और महायान को सलाम ठोंक कर
नवयान के पास विदर्भ लौट पड़े
खचाखच भरी रेलगाड़ी में
खिड़की से बाहर देख रहे
भाऊ चन्द्रकीर्ति जाधव ने धुंआई और मोटे पेण्ट से पुती
लोहे की छड़ों के पार जब विदर्भ की दाहती धरती को देखा
उनके आँखों में आँसू नहीं आए,
ताप वलयें उठीं!
भट्टे से निकली ईंट जैसा उनका तमतमाता मुख
उस अस्ताचलगामी से मुख़ातिब था
तभी उन्हें अपनी काली बण्डी की बाईं जेब में
कुछ महसूस हुआ
हाँ, वह पुड़िया जो वे पद्मसंभव के चरणों से उठा लाए थे
उनके खुरदुरे स्पर्श से पुड़िया कुछ सिहरी
और उसने वह सत्य बक दिया जो उसके
अंदर गुड़मुड़ाया हुआ सो रहा था
यह क्षिति पावक में भस्म होगी!
विदर्भ की धरती फटेगी!
पर यह कोई खुलासा नहीं था
भाऊ चन्द्रकीर्ति जाधव के लिए
बल्कि उन्हें तो इस सत्य के पीछे का सत्य
कि यह धरणी हव्य बनेगी!!
पहले से पता था...
उन्होंने उस पुड़िया को
हवा में सिरा दिया...
सिरा क्या दिया जैसे लुटा दिया
यह एक कोरा सत्य था उनके लिए
गुरु पद्मसंभव से उन्हें
इससे ज़्यादा चाहिए था कुछ...
ओंगोल के तटवर्ती शहर से आए
विदर्भ की तृषित भूमि पर भटक रहे
अबू-असलम के नमक से पपरियाए माथे पर
वह पुड़िया खुलकर यूँ चिपक गई
जैसे कोई इश्तेहार हो!
ट्रेन की मथित-उत्थित हवा में चक्कर खाती
वह पुड़िया बलखाती
भाऊ चन्द्रकीर्ति जाधव की
प्राचीन उँगलियों से निकल कर
अबू असलम की पेशानी पर चस्पाँ हो गई थी!
वक़्त बीता कि सपना था
पर नमक की लकीरों से बात करते उस सत्य ने
अबू-असलम की पेशानी से कहा
मछलीपत्तनम-विशाखापत्तनम में भूचालती लहरें
किनारे लील जाएंगी!
और इतना ही नहीं
गड़गड़ाते-ट्रॉलर और समुद्र का सीना दलते जहाज़
सोख लेंगे वो मीन सम्पदा जिसके
मुस्तफ़ीद और सरपरस्त दोनों
अबू-असलम के दादा-परदादा रहे आए हैं!!
यह सुनना ना था, कि अबू-असलम को
अमीना की बात याद हो आई
जो सदा कहा करती थी
ये मछलियाँ, पसलियाँ हैं लहरों की
जैसे-जैसे कम होंगी
ख़त्म होता जाएगा लहरों का रसाव
बेकाबू लहरें खदेड़ देंगी हमें
मुल्क़ के भीतर...और भीतर
जहाँ खुद मछलियाँ होंगे हम...तड़पती-भटकती, अंतर्धाराओं से
सतह पर आकर उथलाई हुई मछलियाँ!
अबू-असलम, नहीं, अबू-असलम कंस्ट्रक्शन मज़दूर ने
एक तटीय आह भरी
और पसीने में गल रही उस पुड़िया को
ज़मीन पर गिरा दिया
ज़मीन पर धीमे-धीमे उतरती उस पुड़िया के पार्श्व में
उसने देखी अपनी पिंडलियाँ, जिनसे वह मछलियाँ गायब थीं
जिनको उसकी बीवी ने जी-जान से प्यार किया था
थी तो बस चूने-गारे की
एक धूमिल सी लार
और वह टीसता हुआ सत्य,
'जोशीमठ डूबेगा' की एक और पराध्वनिक कोर
टूटेंगे कगार!
साहिल आत्मघात करेगा!!
सुना है वह पुड़िया
फिर सुंदरबन की बाघ-विधवाओं तक पहुँची
नेपाल की एक विकरालती झील के किनारे किसी दमाईं को मिली
कानपुर में मोहनलाल निषाद की
बिवाई पर चिपक गई
जब वे कीचड़-कहल गंगा से अपनी नाव निकाल रहे थे!
फिर बंबई की बाढ़ में, ख़ैरपुर नाथन शाह में
घूमती रही वह-घूमती रही
घूमता रहा वह सत्य
और डूबता रहा जोशीमठ अपनी ही मिट्टी में!!
गुरु के नहीं बताए हुए सत्य के हिस्से का
मानचित्र है यह देश
धाम हैं-तीर्थ हैं
तीर्थयात्री-कल्पवासी-कारसेवक हैं
पर डूब रहे हैं तीर्थ,
भोगते हुए अपने तीर्थ होने का अभिशाप!
गड़ागड़ निकल रही हैं हैं कारें, पहुँच रहे हैं हवाई जहाज़
सीधे दर्शन को, सीधे प्रभु से मुख़ातिब, वीआईपी दर्शन की लालसा लिए
और विशाल-ख़स्ताहाल गैरेजों में बदल रहे हैं
तमाम-तमाम जोशीमठ!
उस सत्य को
सलीब की तरह पहने हुए जिसे अगर
आदिगुरु पूरा-पूरा कह देते
तो वह पारिस्थितिक होता
धार्मिक नहीं!
सभ्यता की कामना में थे
या शास्त्रार्थ के मोह में
शायद भूल गए थे गुरु
तीर्थ सुलभ होता जाएगा!
सत्य धुंधला और भक्त उतावले!
कैमरे पहुँच जाएंगे गुफाओं में!
चोटियों पर बनेंगे हेलीपैड!
सीमाएं खिंच जाएंगी धरती के सीने पर!
सड़कों और सुरक्षा का कारोबार फूलेगा-फलेगा!
उनके कहे हुए सत्य से दुई के
सैकड़ों बिलबिलाते कीड़े निकल कर आएंगे
और चाट जाएंगे प्रबोधन की सभी संभावनाओं को!!
पता नहीं गुरु अपने कहे हुए सत्य की नियति
जानते थे या नहीं
पर उस नहीं कहे हुए सत्य के सामने
पहले की
निस्सारता क्या छुपी रही होगी उनसे?
क्या पता देख लिया हो उन्होंने
कि यह छुपा हुआ सत्य धर्मगुरु नहीं
वे ही जानेंगे जो इसे वहन करेंगे
सभ्यता को हॉण्ट करते वे प्रेत
जो समाज और जंगल के बीच रहते आए हैं
जो जानते रहें हैं हमेशा से,
वे लामा,
वे चन्द्रकीर्ति जाधव,
वे अबू-असलम,
की
कुछ भी नहीं डूबता ख़ुद से
कुछ भी टूटता-जलता-दरकता-चित्थाड़ नहीं होता
किसी नियम के तहत
निर्दोष नहीं होता नदियों का सूखना
जंगलों का दावानलों की भेंट चढ़ जाना
धरती के काँप-काँप उठने में भी
सिर्फ़ धरती की मर्ज़ी नहीं होती!!
जोशीमठ डूब रहा है
डूब रही हैं वे तमाम-तमाम जगहें
जिनपर समय-समय पर सत्य की डींग हुई थी!
कभी धर्म-
कभी सत्ता-
कभी विज्ञान
के ठौर बने थे जहाँ!
जोशीमठ डूब रहा है
जैसे चेर्नोबिल में नाभिकीय विध्वंस हुआ था!
जोशीमठ डूब रहा है जैसे
हिरोशिमा-नागासाकी पे
बम गिरे थे!
इस डूबने में शंघाई और दिल्ली की
हवा की गंध है!
इस डूबने में श्रीलंकाई समुद्र पर
तैर रहे तेल की लसलाहट है!
गुरु का नहीं कहा हुआ सत्य
अब उजागर हो चुका है!
जाने-बूझे-अन्वेषित-प्राप्त किए सभी सत्य-सारा विवेक
अब उसके सामने फीके
बहुत फीके पड़ते जा रहे हैं!
aadi shankracharya ne mahatap ke baad
jab khole honge chakshau
wedant ke alawa dekha hoga ek aur bhi saty
wo ye ki joshimath Dubega
par ye bataya nahin kisi ko
is dusre saty mein shishyatw ki sambhawna nahin thi kya
na koi wijyibhaw
phir shayad bauddh matawlambiyon ko bhi
is dusre saty ki bhanak rahi ho
guru parlok sidhar gaye
apne sath wo dusra saty lekar
ki joshimath Dubega unke aapt wachnon mein
nahin tha un dopahariyon ka nidagh
jinmen Daynamait ki thap par
joshimath ki Doob hogi
un ratriyon ki wedna jab
bhumi par dararen kaDkengi aur
beendh jayengi bastiyon ko
par saty to tha hi
adi prawartak ne nahin kaha to kya
sabhyata wiksit hui
guru ke us saty se ot kar ke
jise unhonne dekha tha par kaha nahin tha
adhure saty ne panthon ko janm diya
panth mathon mein pathra gaye
mathon par biraje mathadhish
mathadhishon ke aage bichh gaye anuyayi
aur anuyayiyon ne
guru ki jhijhak par nagar teerth bana diye!
wo bhay jo kuch wedanti kuch bauddh donon tha
ki joshimath Dubega
Doob gaya ek moorkh atmawishwas ke tale
dharmon ne is tarah samay samay par apne hisse ke saty to kahe
par apni ashankayen chhupa le gaye
dharm bina sandeh ke mahz astha tha
joshimath astha ki rah mein paDne wala ek paDaw
phir bhi saty tha, to use guru apne sath to nahin le ja sakte the
so uski puDiya banakar
ek bhotiya tijarati ke jhole mein Dal diya!
bhotiya se use
ek tibbati lama ne koi durlabh jaDi buti jankar kar kharida
aur apne des le gaya
jab uske math ke any lamaon ne
us durlabh si dikh rahi cheez ko sungha
unhen sunai paDa
ki karkoram, pamir aur kiliyan ke pahaD bhi Dubenge!
aur we sannata kha gaye
un lamaon ne turat us saty ko
acharya rimpochhe yani guru padmsambhaw ke charnon par
chhoD aane ke liye kaha
ye saty ki joshimath Dubega
unhen ek nae sanghat ke sath prtidhwnit hua tha
jaise tarang katori se tankrit hota hua
joshimath Duboya jayega!!
joshimath Duboya jayega!!
theek us waqt jab padmsambhaw ke charnon par
us saty ka chaDhawa ho raha tha
rewal sar tere baithe the bhau chandrkirti jadhaw
baba sahab ke buddh ko DhunDhte DhunDhte mahayan ki galiyon mein
kahin kho se gaye the
lambe samay tak
ghanghor upekshayen jhelne ke baad
ab ghar jane ko the
jate jate socha bhau chandrkirti jadhaw ne
kyoon na guru ke pas se koi smriti chihn leta chalun
koi chinhani koi pratik
wo dharm jo ashray na de saka na apnepan ka bhaw
par kahin na kahin prerna to raha hi hai
unki apni unke bheem ki
unhonne padmsambhaw ke charnon se
puDiya mein phaDaphData wo saty uthaya
aur mahayan ko salam thonk kar
nawyan ke pas widarbh laut paDe
khachakhach bhari relgaDi mein
khiDki se bahar dekh rahe
bhau chandrkirti jadhaw ne dhunai aur mote pent se puti
lohe ki chhaDon ke par jab widarbh ki dahti dharti ko dekha
unke ankhon mein ansu nahin aaye,
tap walyen uthin!
bhatte se nikli int jaisa unka tamtamata mukh
us astachalgami se mukhatib tha
tabhi unhen apni kali banDi ki bain jeb mein
kuch mahsus hua
han, wo puDiya jo we padmsambhaw ke charnon se utha laye the
unke khurdure sparsh se puDiya kuch sihri
aur usne wo saty bak diya jo uske
andar guDamuDaya hua so raha tha
ye kshaiti pawak mein bhasm hogi!
widarbh ki dharti phategi!
par ye koi khulasa nahin tha
bhau chandrkirti jadhaw ke liye
balki unhen to is saty ke pichhe ka saty
ki ye dharnai hawy banegi!!
pahle se pata tha
unhonne us puDiya ko
hawa mein sira diya
sira kya diya jaise luta diya
ye ek kora saty tha unke liye
guru padmsambhaw se unhen
isse zyada chahiye tha kuch
ongol ke tatwarti shahr se aaye
widarbh ki trishait bhumi par bhatak rahe
abu aslam ke namak se papariyaye mathe par
wo puDiya khulkar yoon chipak gai
jaise koi ishtehar ho!
train ki mathit utthit hawa mein chakkar khati
wo puDiya balkhati
bhau chandrkirti jadhaw ki
prachin ungliyon se nikal kar
abu aslam ki peshani par chaspan ho gai thee!
waqt bita ki sapna tha
par namak ki lakiron se baat karte us saty ne
abu aslam ki peshani se kaha
machhlipattnam wishakhapattnam mein bhuchalti lahren
kinare leel jayengi!
aur itna hi nahin
gaDagDate traular aur samudr ka sina dalte jahaz
sokh lenge wo meen sampada jiske
mustafid aur saraprast donon
abu aslam ke dada pardada rahe aaye hain!!
ye sunna na tha, ki abu aslam ko
amina ki baat yaad ho i
jo sada kaha karti thi
ye machhliyan, pasaliyan hain lahron ki
jaise jaise kam hongi
khatm hota jayega lahron ka rasaw
bekabu lahren khadeD dengi hamein
mulq ke bhitar aur bhitar
jahan khud machhliyan honge hum taDapti bhatakti, antardharaon se
satah par aakar uthlai hui machhliyan!
abu aslam, nahin, abu aslam kanstrakshan mazdur ne
ek tatiy aah bhari
aur pasine mein gal rahi us puDiya ko
zamin par gira diya
zamin par dhime dhime utarti us puDiya ke parshw mein
usne dekhi apni pinDaliyan, jinse wo machhliyan gayab theen
jinko uski biwi ne ji jaan se pyar kiya tha
thi to bus chune gare ki
ek dhumil si lar
aur wo tista hua saty,
joshimath Dubega ki ek aur paradhwnik kor
tutenge kagar!
sahil atmghat karega!!
suna hai wo puDiya
phir sundarban ki bagh widhwaon tak pahunchi
nepal ki ek wikralti jheel ke kinare kisi damain ko mili
kanpur mein mohanlal nishad ki
biwai par chipak gai
jab we kichaD kahl ganga se apni naw nikal rahe the!
phir bambai ki baDh mein, khairpur nathan shah mein
ghumti rahi wo ghumti rahi
ghumta raha wo saty
aur Dubta raha joshimath apni hi mitti mein!!
guru ke nahin bataye hue saty ke hisse ka
manachitr hai ye desh
dham hain teerth hain
tirthayatri kalpwasi karasewak hain
par Doob rahe hain teerth,
bhogte hue apne teerth hone ka abhishap!
gaDagaD nikal rahi hain hain karen, pahunch rahe hain hawai jahaz
sidhe darshan ko, sidhe prabhu se mukhatib, wiaipi darshan ki lalsa liye
aur wishal khastahal gairejon mein badal rahe hain
tamam tamam joshimath!
us saty ko
salib ki tarah pahne hue jise agar
adiguru pura pura kah dete
to wo paristhitik hota
dharmik nahin!
sabhyata ki kamna mein the
ya shastrarth ke moh mein
shayad bhool gaye the guru
teerth sulabh hota jayega!
saty dhundhla aur bhakt utawle!
camere pahunch jayenge guphaon mein!
chotiyon par banenge helipaiD!
simayen khinch jayengi dharti ke sine par!
saDkon aur suraksha ka karobar phulega phalega!
unke kahe hue saty se dui ke
saikDon bilbilate kiDe nikal kar ayenge
aur chat jayenge prabodhan ki sabhi sambhawnaon ko!!
pata nahin guru apne kahe hue saty ki niyti
jante the ya nahin
par us nahin kahe hue saty ke samne
pahle ki
nissarta kya chhupi rahi hogi unse?
kya pata dekh liya ho unhonne
ki ye chhupa hua saty dharmaguru nahin
we hi janenge jo ise wahn karenge
sabhyata ko haunt karte we pret
jo samaj aur jangal ke beech rahte aaye hain
jo jante rahen hain hamesha se,
we lama,
we chandrkirti jadhaw,
we abu aslam,
ki
kuch bhi nahin Dubta khu se
kuch bhi tutta jalta darakta chitthaD nahin hota
kisi niyam ke tahat
nirdosh nahin hota nadiyon ka sukhna
janglon ka dawanlon ki bhent chaDh jana
dharti ke kanp kanp uthne mein bhi
sirf dharti ki marzi nahin hoti!!
joshimath Doob raha hai
Doob rahi hain we tamam tamam jaghen
jinpar samay samay par saty ki Deeng hui thee!
kabhi dharm
kabhi satta
kabhi wigyan
ke thaur bane the jahan!
joshimath Doob raha hai
jaise chernobil mein nabhikiy widhwans hua tha!
joshimath Doob raha hai jaise
hiroshima nagasaki pe
bam gire the!
is Dubne mein shanghai aur dilli ki
hawa ki gandh hai!
is Dubne mein shrilankai samudr par
tair rahe tel ki laslahat hai!
guru ka nahin kaha hua saty
ab ujagar ho chuka hai!
jane bujhe anweshait prapt kiye sabhi saty sara wiwek
ab uske samne phike
bahut phike paDte ja rahe hain!
aadi shankracharya ne mahatap ke baad
jab khole honge chakshau
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wo ye ki joshimath Dubega
par ye bataya nahin kisi ko
is dusre saty mein shishyatw ki sambhawna nahin thi kya
na koi wijyibhaw
phir shayad bauddh matawlambiyon ko bhi
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Doob gaya ek moorkh atmawishwas ke tale
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so uski puDiya banakar
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unhen ek nae sanghat ke sath prtidhwnit hua tha
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lohe ki chhaDon ke par jab widarbh ki dahti dharti ko dekha
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tap walyen uthin!
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tabhi unhen apni kali banDi ki bain jeb mein
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pahle se pata tha
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hawa mein sira diya
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wo puDiya khulkar yoon chipak gai
jaise koi ishtehar ho!
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wo puDiya balkhati
bhau chandrkirti jadhaw ki
prachin ungliyon se nikal kar
abu aslam ki peshani par chaspan ho gai thee!
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sokh lenge wo meen sampada jiske
mustafid aur saraprast donon
abu aslam ke dada pardada rahe aaye hain!!
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amina ki baat yaad ho i
jo sada kaha karti thi
ye machhliyan, pasaliyan hain lahron ki
jaise jaise kam hongi
khatm hota jayega lahron ka rasaw
bekabu lahren khadeD dengi hamein
mulq ke bhitar aur bhitar
jahan khud machhliyan honge hum taDapti bhatakti, antardharaon se
satah par aakar uthlai hui machhliyan!
abu aslam, nahin, abu aslam kanstrakshan mazdur ne
ek tatiy aah bhari
aur pasine mein gal rahi us puDiya ko
zamin par gira diya
zamin par dhime dhime utarti us puDiya ke parshw mein
usne dekhi apni pinDaliyan, jinse wo machhliyan gayab theen
jinko uski biwi ne ji jaan se pyar kiya tha
thi to bus chune gare ki
ek dhumil si lar
aur wo tista hua saty,
joshimath Dubega ki ek aur paradhwnik kor
tutenge kagar!
sahil atmghat karega!!
suna hai wo puDiya
phir sundarban ki bagh widhwaon tak pahunchi
nepal ki ek wikralti jheel ke kinare kisi damain ko mili
kanpur mein mohanlal nishad ki
biwai par chipak gai
jab we kichaD kahl ganga se apni naw nikal rahe the!
phir bambai ki baDh mein, khairpur nathan shah mein
ghumti rahi wo ghumti rahi
ghumta raha wo saty
aur Dubta raha joshimath apni hi mitti mein!!
guru ke nahin bataye hue saty ke hisse ka
manachitr hai ye desh
dham hain teerth hain
tirthayatri kalpwasi karasewak hain
par Doob rahe hain teerth,
bhogte hue apne teerth hone ka abhishap!
gaDagaD nikal rahi hain hain karen, pahunch rahe hain hawai jahaz
sidhe darshan ko, sidhe prabhu se mukhatib, wiaipi darshan ki lalsa liye
aur wishal khastahal gairejon mein badal rahe hain
tamam tamam joshimath!
us saty ko
salib ki tarah pahne hue jise agar
adiguru pura pura kah dete
to wo paristhitik hota
dharmik nahin!
sabhyata ki kamna mein the
ya shastrarth ke moh mein
shayad bhool gaye the guru
teerth sulabh hota jayega!
saty dhundhla aur bhakt utawle!
camere pahunch jayenge guphaon mein!
chotiyon par banenge helipaiD!
simayen khinch jayengi dharti ke sine par!
saDkon aur suraksha ka karobar phulega phalega!
unke kahe hue saty se dui ke
saikDon bilbilate kiDe nikal kar ayenge
aur chat jayenge prabodhan ki sabhi sambhawnaon ko!!
pata nahin guru apne kahe hue saty ki niyti
jante the ya nahin
par us nahin kahe hue saty ke samne
pahle ki
nissarta kya chhupi rahi hogi unse?
kya pata dekh liya ho unhonne
ki ye chhupa hua saty dharmaguru nahin
we hi janenge jo ise wahn karenge
sabhyata ko haunt karte we pret
jo samaj aur jangal ke beech rahte aaye hain
jo jante rahen hain hamesha se,
we lama,
we chandrkirti jadhaw,
we abu aslam,
ki
kuch bhi nahin Dubta khu se
kuch bhi tutta jalta darakta chitthaD nahin hota
kisi niyam ke tahat
nirdosh nahin hota nadiyon ka sukhna
janglon ka dawanlon ki bhent chaDh jana
dharti ke kanp kanp uthne mein bhi
sirf dharti ki marzi nahin hoti!!
joshimath Doob raha hai
Doob rahi hain we tamam tamam jaghen
jinpar samay samay par saty ki Deeng hui thee!
kabhi dharm
kabhi satta
kabhi wigyan
ke thaur bane the jahan!
joshimath Doob raha hai
jaise chernobil mein nabhikiy widhwans hua tha!
joshimath Doob raha hai jaise
hiroshima nagasaki pe
bam gire the!
is Dubne mein shanghai aur dilli ki
hawa ki gandh hai!
is Dubne mein shrilankai samudr par
tair rahe tel ki laslahat hai!
guru ka nahin kaha hua saty
ab ujagar ho chuka hai!
jane bujhe anweshait prapt kiye sabhi saty sara wiwek
ab uske samne phike
bahut phike paDte ja rahe hain!
स्रोत :
रचनाकार : सौम्य मालवीय
प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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