क्रांतिकारी होने की हर छलाँग का एक पैर रजाई के अंदर है
krantikari hone ki har chhalang ka ek pair rajai ke andar hai
निशांत कौशिक
Nishant Kaushik
क्रांतिकारी होने की हर छलाँग का एक पैर रजाई के अंदर है
krantikari hone ki har chhalang ka ek pair rajai ke andar hai
Nishant Kaushik
निशांत कौशिक
और अधिकनिशांत कौशिक
इस उम्र में
हमें पता है
क्या बात चल रही है
हवा किस तरफ़ है
क्या पक्ष होने वाला है हमारा
इसी उम्र में
आपको स्वीकारना होगा
कि जीवन सुलझाने
या समझने की चीज़ नहीं है
न कोई पहेली है
न कोई समस्या
तुम्हारे निजी रूमाल में बाँधी हुई
यह भी कि चुप
न अज्ञानता है
न पलायन
उम्र वैसे यह सटीक दिखती नहीं
सँभलो या बिखरो
इसमें
जीवन का सही-सही विभाजन भी संभव नहीं
इस उम्र में अधिकतम कुछ ख़ास नहीं घटता
इतिहास में कभी पलटी हों सभ्यताएँ तो पता नहीं
लेकिन इसी उम्र में यह चिढ़ है
संदेह है
कि कोई न कोई कहेगा
कि यही तनाव उनके समय भी था
सरकार का प्रतिबंध तो और भी ज़्यादा था
उनके समयों में
कौन जाने उनको भी
चुपके से तानाशाह में गुण दिखने लगे थे
खोने और चुनने के दबाव में
कुछ खो देने की इच्छा सबकी थी
जिसे बाद में काश महान समझे इतिहास
काश हम किसी संजीदा ट्रेजेडी का हिस्सा हों
ज़िंदगी सही-सही जीने के दबाव हैं बहुत
क्रांतिकारी होने की हर छलाँग का एक पैर
रजाई के अंदर है
चुप रहने पर उलाहना है बहुत
नींद लगती भी है
तो खुलती है बासी मुँह लिए
- रचनाकार : निशांत कौशिक
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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