Font by Mehr Nastaliq Web

जो है

jo hai

कैलाश वाजपेयी

और अधिककैलाश वाजपेयी

    बचपन में वह नास्तिक नहीं था

    पिता को देखकर याद जाया

    करते थे देवता

    सुन रखी थीं जिनकी कहानियाँ

    माँ से

    पत्थर हुई औरत का आख्यान पढ़कर

    उसने यह जाना—

    शोषण की जड़ कितनी पुरानी है

    धीरे-धीरे भ्रम घुलने लगा

    पलक झपकते पीले पत्ते

    संवत्सर के झर-झर-झर ढेर होने लगे

    मन के तहख़ाने में

    धुएँ का दमामा बहस

    करने लगा

    कीर्तन-मँजीरे से

    गरुड और बाघंबर पर बैठे देवता

    भू-लुंठित हो चले

    तब भी वह संशयवादी नहीं हुआ

    पिता को जाना ही जाना था।

    उस उड़ान पर

    जो हर थकान के बावजूद

    भरनी ही पड़ती है

    अंततः

    अकेले अकेलों की बस्ती में।

    रतजगा

    बेसुरा शोर रहा था जिस ओर से

    वह गया करने पड़ताल

    क्या विधि हो

    उसके अंतिम संस्कार की

    अभी-अभी सो गया है

    जो प्रत्यूषवेला में

    अपनी ही धुन से ध्वस्त

    अकेलों के झुंड ने

    उत्तर ही नहीं दिया उसके

    अनगढ़ रुक्ष, अटपटे सवाल का

    वह अकेला लौट आया

    अकेलों की गुमनाम टोली से

    कहीं किसी पंडित का ठीहा

    तलाशता

    पहला पंडित देवी मंदिर का

    पेचिश में पड़ा था।

    साफ़ मना कर गए

    आर्यसमाजी

    उनका ख़ुद का जलसा था।

    सनातनी

    गरुड़-पुराण पढ़ने सकता था

    अगले दिन

    शव-संस्कार से उसे एतराज़ था

    और सबसे पास का

    श्मशान

    पता चला फ़ोन करने पर

    आरक्षित हो चुका था शाम सात तक

    कितने लोग इतने कम

    अंतराल में

    छोड़ जाते हैं रोज़-रोज़ दुनिया

    वह सोचता रहा बैठा सिरहाने

    मृत जन्मदाता के।

    हारकर, फ़ोन किया

    एक-दो मित्रों को

    जो पाए शाम तक

    ख़ासी बहस के बाद तै हुआ—

    दाह संस्कार विधिवत ही होगा

    वह भी तत्काल

    कल शहर में हड़ताल है

    दक्षिण दिल्ली में संस्कृत विद्यापीठ है

    वहाँ कर्मकांड भी पढ़ाते हैं

    क्यों किसी नवसिखुए को पकड़ा जाए

    चले हम चौराहे पर, गाड़ियाँ

    गाड़ियों के पीछे

    रोक दिया हमें पुलिसवालों ने

    पी. एम. का क़ाफ़िला गुज़रना था

    हमने देखा एक

    लँगड़ा मज़दूर कंधे पर रक्खे नसैनी

    चाह रहा था पार करना

    चौड़ा रास्ता

    धपसट में गिर पड़ा

    एक साथ शब्दों के बुलबुले

    रास्ता, नसैनी

    लँगड़ा मज़दूर

    रुका हुआ क़ाफ़िला जनता का

    किसी एक काग़ज़ी

    जननायक के इंतज़ार में

    स्रोत :
    • पुस्तक : भविष्य घट रहा है (पृष्ठ 94)
    • रचनाकार : कैलाश वाजपेयी
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 1999

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए