जैसे ही डॉक्टर ने कहा
झुकना मत।
अब और झुकने की गुंजाइश नही...
सुनते ही उसे...
हँसी और रोना,
एक साथ आ गया।
ज़िंदगी में पहली बार
किसी के मुँह से सुन रही थी वह
ये शब्द...
बचपन से ही वह
घर के बड़े-बूढों
माता पिता, चाची, ताई, फूफी, मौसी...
अड़ोस-पड़ोस,
अलाने-फलाने,
और समाज से
यही सुनती आई है
यही दिया गया है उसे घुट्टी में
झुकी रहना...
औरत के झुके रहने से ही
बनी रहती है गृहस्थी...
बने रहते हैं संबंध...
प्रेम.. प्यार, परिवार...
झुकी रहना...
जैसे...
पृथ्वी अपनी धुरी पर
झुकी रहकर गति करती रहती है
उसका झुकना बना
नींव घर और इतिहास की
उसके झुकने पे बनी लोकोक्तियाँ
मुहावरे
और वह झाँसे में आई
आदिमयुग से ही
झुकती गई... झुकती गई
और आज ये डॉक्टर कह रहा है
झुकना मत...
वह हैरत से देख रही है
उसके चेहरे की ओर
और डॉक्टर उसे नादान समझ
समझा रहा है
देखिए... लगातार झुकने से
आपकी रीढ़ की हड्डी में गैप आ गया है
गैप समझती हैं न आप?
रीढ़ की हड्डी छोटे-छोटे छल्ले जैसी हड्डियां होती हैं
लगातार झुकने से वो अपनी जगह से
ख़िसक गई हैं
डॉक्टर बोले जा रहा है
और वह सोच रही है...
बचपन से आज तक
क्या क्या खिसक गया
उसके जीवन से
बिना उसके जाने समझे...
उसका खिलंदड़ापन, अल्हड़पन
उसकी स्वच्छंदता... उसके सपने
उसका मन, उसकी चाहत...
इच्छा-अनिच्छा
सच्च कितना कुछ खिसक गया जीवन से
डॉक्टर उसे समझाए जा रहा है
कि ज़िंदा रहने के लिए
अब ज़रूरी हो गया है
थोड़ा तन कर रहें
और अनजाने ही वह
टटोलने लगी है...
अपनी रीढ़!
- रचनाकार : मीनाक्षी जिजीविषा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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