साँझ बीतने को है
रात उतरने को है
मोड़दार सड़क पर मद्धिम रफ़्तार से दौड़ रही है जीप
अचानक एक अलग ही आवाज़ के साथ रुकी तो
मुसाफ़िरों को सहमना ही था
सामने जीप की हेडलाइट में दिखी
लगभग वैसी ही जलती दो आँखें
सड़क के बीचोबीच खड़ा हुआ था बाघ
अन्यमनस्क-सा
अलबत्ता उसकी ग़ुर्राहट
थरथरा देने वाली थी
मेरे लिए बाघ का इस तरह दिखना
भयमिश्रित कौतुक की बात थी
परंतु ड्राइवर भैंरो सिंह तो ऐसे दृश्यों का
अभ्यस्त हो चुका था
‘हफ़्ते भर पहले भी इसी तरह बीच सड़क पर
बैठा मिला था बाघ
कई बार हॉर्न देने के बावजूद
काफ़ी देर तक हिला नहीं था’
मज़बूती से स्टेयरिंग पकड़े हुए भैंरो ने बताया :
‘जंगल के राजा को तबाह कर दिया
आदमी के जंगलीपन ने’
जंगल ख़त्म होने को हैं
जानवर ख़त्म होने को हैं
झाड़ियाँ ज़रूर अभी तक बची हुई हैं
अब इन्हीं झाड़ियों में कभी सुअर पसरे दिखते हैं
तो कभी बाघ
इन्हीं झाड़ियों से लगी पगडंडी गाँव जाती है
जहाँ रात होते ही बच्चों को रोज़
बाघ के डरावने क़िस्से सुनाए जाते हैं
फिर कहा जाता है :
‘जल्दी सो जा, वरना बाघ आ जाएगा’
वाक़ई इसी समय आँगन के एक कोने में
जलती हुई दो आँखें दिखाई दे जाती हैं
- रचनाकार : हरि मृदुल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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